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यथाकाशस्थितो नित्यं वायुः सर्वत्रगो महान्।
तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय।।
अर्थ जैसे कि आकाश में चलने वाली वायु आकाश में स्थित है , उसी प्रकार सम्पूर्ण भूत मेरे में स्थित हैं, ऐसा तू समझ व्याख्यागीता अध्याय 9 का श्लोक 6 जैसे सागर में रहने वाली मछली कौन-सी दिशा में भी जाये वह रहती सागर में ही है, क्योंकि मछलियां अनेक हैं सागर एक ही है। जैसे हमारे घर का आकाश और पड़ोसी के घर का आकाश अलग-अलग नहीं एक ही है, घर छोटे-बड़े अलग-अलग बने हुए हैं सबकी दीवारें अलग-अलग है ओैर सब घरों के भीतर जो आकाश है वह एक ही है। कृष्ण ने यहाँ बहुत ही सरल भाषा में ज्ञान दिया है, कि सब मनुष्य मुझमें ऐसे स्थित है जैसे आकाश में वायु स्थित है, यह हवा किसी भी दिशा व देश में चले चाहे, लेकिन यह हवा रहती इसी एक आकाश में ही है, हवा जैसे आकाश में रहती है आकाश से बाहर नहीं जाती ऐसे ही कृष्ण कहते हैं सब प्राणी मुझमें स्थित है अर्जुन तुम ऐसे जानो।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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