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किं पुनर्ब्राह्मणाः पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा।
अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम्।।
अर्थ तो शुद्ध आचरण करने वाले ब्राह्मण, पुण्यवान भक्त, और ऋषि सवरूप राजा भगवान के भगत होकर परम गति को प्राप्त होते हैं इनके लिए तो अब कहना ही क्या , इसलिए इस अनित्य और सुख रहित शरीर को प्राप्त करके तू मेरा भजन कर व्याख्यागीता अध्याय 9 का श्लोक 33 भगवान कहते हैं कि स्त्रियाँ, वैश्या, शुद्र आदि सब मेरी शरण होकर मुझको प्राप्त हो जाते है, फिर जो पवित्र आचरण वाले ब्रह्माण और राजर्षि (कर्मयोगी) है उनका तो कहना ही क्या अर्थात वे निःसन्देह भक्ति को प्राप्त होते हैं, इसलिए इस अनित्य सुख रहित शरीर को प्राप्त हुआ तू मेरा भजन कर। अर्थात हे अर्जुन यह शरीर अनित्य है यानि हर क्षण बदल रहा है और यह शरीर दुखों का घर है। इस शरीर को छुटने से पहले मेरे में युक्त हुआ तू युद्ध भी कर व मेरा चिंतन भी कर यानि आत्मा में युक्त होकर साधना में स्थित हुआ तू मुझको ही प्राप्त होगा। कृष्ण कहते हैं यह शरीर सुख रहित है और अनित्य यानि क्षणभंगुर है इस संसार में जब अपना शरीर ही नित्य नहीं तो यहाँ किस वस्तु को नित्य समझे, यहाँ कोई भी चीज नित्य नहीं है सब कुछ यहाँ हर क्षण बदल रहा है। अपने भीतर मन बदल रहा है हर क्षण और बाहर संसार बदल रहा है सम्पूर्ण संसार क्षणभंगुर है। जब तक किसी भी वस्तु को देखते हैं तब तक वह बदल जाती है, देखने मात्र समय में भी सब चीजें बदल रही है। जैसे नदी में एक पत्ता गिरा है उस पत्ते को तुम देखते हो इतने में वह आगे निकल जाता है यानि वह आगे बह जाता है आप किसी चेहरे को देखते हो तब भी वह बदल रहा है यह मत सोचना कि अपने चेहरे को देखा फिर कुछ देर बाद देखा और बीच में नहीं देखा तब-तब चेहरा बदलता है, यह तो निरंतर बदल रहा है देखते-देखते ही वह चेहरा बुढ़ापे की ओर जा रहा है। यह बदलाव बहुत सूक्ष्म है इस बदलाव को हम देख नहीं पाते, पौधा कब पेड़ बन गया हमारी आँखों के सामने कब बदल गया हमारी आँखे देख नहीं पाई, बच्चा कब क्षण-क्षण करके बड़ा हो गया हमारी आँखे देख नहीं पाई, एक व्यक्ति अपने सम्पूर्ण जीवन में संसार को एक बार भी नहीं देख पाता कारण कि जब तक देखोगे उतने में तो वह बदल गया, अपना शरीर जन्म के वक्त छोटा-सा था हमें भी पता नहीं लगा कब यह क्षण-क्षण करके इतना बड़ा हो गया और कब यह क्षण-क्षण करते बुढापे में जरजर हो जाएगा और हम कितना भी जतन कर लें इसको मरने से रोक नहीं पाएंगे। इस संसार को क्षणभंगुर इसलिए कहा कि किसी भी व्यक्ति के पास एक क्षण से ज्यादा वक्त नहीं, जो समय बीत चुका है उतना हमारा जीवन मर गया है और जो भविष्य आया नहीं उसकी कोई गारंटी नहीं कि वह वक्त आएगा। हमारे पास बस इतना ही जीवन होता है कि जिस क्षण में हम खड़े हैं और वह क्षण भी निकला फिर अगले क्षण में चले गए पीछे वाला क्षण मर गया, आगे वाले क्षण का भरोसा नहीं कि आयेगा या नहीं बस मनुष्य के पास एक ही क्षण होता है पूरे जीवन में या यूँ कहें कि जीवन एक ही क्षण का होता है। हम सबके पास एक क्षण से ज्यादा का जीवन नहीं, जैसे मैंने एक सांस छोड़ी और फिर सांस लेने के लिए सांस खींचू और क्या पता वह सांस खींच पाऊंगा या नहीं, क्या पता कब वह लास्ट क्षण मृत्यु बन जाए। जब हमारा शरीर ही अनित्य है तो इस संसार की किस वस्तु को नित्य जाने, सारा संसार क्षणभंगुर है। इसलिए कृष्ण कहते हैं यह शरीर अनित्य और दुःखों का घर है, इस संसार में सभी मनुष्यों को दुःख है यहाँ कोई सुखी रहे भी तो कैसे यहाँ वक्त ठहरता ही नहीं, पूरे जीवन मनुष्य इस शरीर के लिए दौड़ता है पूरे जीवन इकट्ठा करता है, मृत्यु एक क्षण में सब बिखेर जाती है। इस संसार का मजहब भूख है यहाँ पशु, पक्षी, जीव, जन्तु, मनुष्य सब अपनी भूख मिटाने के लिए दौड़ रहें हैं, इसलिए इस शरीर को सुख रहित कहा। कृष्ण कहते हैं इस शरीर के रहते-रहते तू मेरा भजन कर, मेरा ध्यान-भजन करने से तू इस अनन्य सुख रहित शरीर को दोबारा प्राप्त नहीं होगा, इस संसार को प्राप्त ना होकर मुझ परम धाम को ही प्राप्त होगा।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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