Logo
मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्युः पापयोनयः।
स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम्।।
अर्थ हे पार्थ! अगर कोई प्राणी पापयोनियों से उत्पन्न हों, तो भी वे मेरा ही आश्रय लेकर परम गति को प्राप्त होते हैं, यद्यपि वे स्त्रियाँ, वैश्य और शूद्र ही क्यों ना हों व्याख्यागीता अध्याय 9 का श्लोक 32 यहाँ पापयोनी शब्द ऐसा व्यापक है जिसमें असुर, राक्षस, पशु, जीव जन्तु आदि सब लिए जा सकते हैं। यहाँ स्त्रियां शब्द आया है इसका मतलब यह नहीं कि स्त्री पापयोनी व वेश्या आदि शूद्र के बराबर है, स्त्री शब्द इसलिए लिया गया है कि स्त्रियां पति के साथ ही मेरा आश्रय ले सकती है। स्त्रियाँ मेरा आश्रय लेकर परमगति को प्राप्त हो सकती हैं, इसलिए स्त्रियों को मन में परमात्मा का मनन करना चाहिए। वैश्या अर्थात अंगारा बुझते ही कोयला बन जाता है फिर उस कोयले को कितना भी साबुन से धो ले तो भी उसका कालापन नहीं मिटता, अगर उसको दोबारा अग्नि में रख दिया जाये तो फिर कालापन नहीं रहता वह चमक उठता है, ऐसे ही अपवित्रता भगवान से विमुख होने से आती है। अगर भगवान के सम्मुख हो जाए तो उसकी अपवित्रता मिट जाती है, वह महान पवित्र हो जाती है। शुद्र अर्थात जैसे माँ की गोद में जाने के लिए किसी भी बच्चे को मनाही नहीं, क्योंकि वह बच्चे माँ के ही है, ऐसे ही सब प्राणी परमात्मा का अंश होने से परमात्मा के ही है। किसी भी मानव को परमात्मा की तरफ चलने में कोई मनाही नहीं परमात्मा के सभी जीव बच्चे है कोई भी परम मार्ग पर चल के परम गति को प्राप्त हो सकते हैं, अर्थात हो जाते हैं।
logo

अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

Follow us on

अधिक जानकारी या निस्वार्थ योगदान के लिए आज ही संपर्क करे।

[email protected] [email protected]