शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनैः।
संन्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि।।
संन्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि।।
अर्थ इस प्रकार, शुभ और अशुभ सब कर्मों के फलों के द्वारा ही तू कर्मबंधन से मुक्त होगा। संन्यास और योग द्वारा मन को मुझमे लीन कर विमुक्त होकर मुझको प्राप्त होगा व्याख्यागीता अध्याय 9 का श्लोक 28
इस प्रकार अपने सहित सम्पूर्ण पदार्थ और कर्मों को मेरे अर्पण करने से कर्मबन्धन से और सम्पूर्ण पाप-पुण्य के फलों से मुक्त हो जाएगा। शुभाशुभफलैः अर्थात मनुष्य सम्पूर्ण विश्वास और श्रद्धा के साथ अपने सारे कर्म प्रभु को अर्पण करदे और योग में स्थिर होकर भगवत स्वरूप मार्ग पर चले तो उस स्थिर योगी के पिछले अनन्त जन्मों के पापों का अंत हो जाता है। भगवान कहते हैं कि ऐसे अपने सहित सब कुछ मेरे अर्पण करने वाला, आत्मयुक्त हुआ तू मुक्त हो जाएगा अर्थात मुझे प्राप्त हो जाएगा।