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येऽप्यन्यदेवता भक्ता यजन्ते श्रद्धयान्विताः।
तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम्।।
अर्थ जो मनुष्य भक्ति से श्रद्धापूर्वक अन्य देवताओं की पूजा करते हैं, वे भी मुझे ही पूजते हैं लेकिन वे ये सब अनुचित ढंग से पूजा करते हैं व्याख्यागीता अध्याय 9 का श्लोक 23 देवताओं का पूजन करने वाले वास्तव में मेरा ही पूजन करते है, क्योंकि तत्व से मेरे सिवाय कुछ है ही नहीं, परमात्मा कहते हैं मेरे से अलग उन देवताओं की सत्ता ही नहीं है, वह सब मेरे ही स्वरूप है, उनके नाम पर किया गया पूजन सच में तो मेरा ही पूजन है, लेकिन है अवधि पूर्वक भगवान ने कहा है, ब्रह्मलोक तक के सब लोक पुनरावृति है, भोगों को चाहने वाले देवताओं को पूजते हैं, देवता को पूजने वाले को उत्तम लोक मिलता है, उत्तम लोक अवधि वाला है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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