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ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालं क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति।
एव त्रयीधर्ममनुप्रपन्ना गतागतं कामकामा लभन्ते।।
अर्थ वे इस बड़े स्वर्गलोक का भोग भोगकर, जब उनके पुण्य की अंतर्गति हो जाती है, तो मृत्युलोक में लौटते हैं। इसी प्रकार, तीनों वेदों द्वारा अनुसरण किए गए धर्म को प्राप्त होकर, कामनाओं को भोगने वाले व्यक्ति दुर्गति और सुख की प्राप्ति के लिए बार बार जन्मते हैं व्याख्यागीता अध्याय 9 का श्लोक 21 जो स्वर्ग प्राप्ति चाहते हैं, वह स्वर्ग प्राप्ति की इच्छा के लिए ही सब यज्ञ, दान, तप करते हैं और पुण्य के मार्ग पर चलते हैं, मृत्यु के बाद उनके अच्छे कर्मों के रूप में उनकी इच्छा अनुसार स्वर्ग प्राप्त होता है। वे मनुष्य उस विशाल स्वर्ग के भोगों को भोग कर, यानि स्वर्ग का भोग देवताओं का भोग है, परन्तु उस भोग का वह जीव भोग उतने ही समय कर पाएंगे, जितना उन्होंने अच्छे कर्म किये फल में उतने वक्त ही स्वर्ग भोग मिलता है, पुण्य किये हुए कर्मों का जब फल क्षीण (शुन्य) हो जाता है तब वह दोबारा मृत्यु लोक में आ जाते हैं। इस प्रकार त्रिगुणी माया का आश्रय (शरण) लिए हुए भोगों की कामना करने वाले मनुष्य आवागमन (जन्म मृत्यु) को प्राप्त होते हैं। कृष्ण कहते हैं भोगों की कामना करने वाले मनुष्य दोबारा लौट आते हैं। आपने ऐसी नदी नाले देखे होंगे, जिनके ऊपर पत्ते ही पत्ते जुड़ जाते हैं और पत्तांे से नदी ढक जाती है, नीचे पानी छिप जाता है, ऐसे ही मन के पत्तों से यानि मन की इच्छाओं से, आत्मा ढकी जाती है, इच्छाओं वाले व्यक्ति में इच्छाऐं ही इच्छाऐं दिखती हैं उनको आत्मा का कोई ज्ञान नहीं रहता, भोगों की कामना रहने के कारण जीव आवागमन को प्राप्त होता है यानि संसार को प्राप्त होता है। संसार का अर्थ होता है चक्कर। जैसे बैलगाड़ी का चक्कर होता है वह घूमता रहता है, चक्कर के बीच में जो ताड़ी होती है, वह एक बार ऊपर जाती है फिर तत्काल नीचे आ जाती है, जैसे ही ऊपर पंहुचती है तुरन्त नीचे आना शुरू हो जाती है फिर नीचे आते ही ऊपर फिर नीचे चक्कर चलता रहता है। कृष्ण कहते हैं कामना से स्वर्ग मिल भी जाए तो भी लौट आना पड़ता है, लोग सुख की कामना से भी भक्ति में लगे रहते हैं, वह भी वापस लौट आएंगे, कामना से भक्ति करने वाले चाहे कितना भी बड़ा सुख मिल जाए, जैसे ही पुण्य का फल खत्म होगा, यानि कीमत वसुल होते ही वह वापिस लौट आता है। अगर मृत्यु के भय से बचना हो तो जीवन में कामना से बचना पड़ेगा और अगर दुःख से बचना हो तो सुख के आकर्षण से बचना पड़ेगा, जो सुख का आकर्षण छोड़ देता है उसे फिर कोई दुःख नहीं। क्योंकि मेरा अपमान तभी कोई कर सकता है, जब मुझे मान की चाह रहती हो और अगर मैं किसी से प्रशंसा चाहूँ तो ही मुझे गाली दी जा सकती है अगर मैं आदर चाहूँ तो ही मेरा निरादर किया जा सकता है। कामना से स्वर्ग भी मिल जाए तो भी लौटना पड़ेगा, अगर सुख की कामना ही नहीं तो लौटकर नहीं आना पड़ेगा।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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