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पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामहः।
वेद्यं पवित्रमोङ्कार ऋक्साम यजुरेव च।।
अर्थ मैं इस जगत का पिता, माता, धाता और पितामह हूँ। जानने योग्य, पवित्र ओंकार, ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद भी मैं ही हूँ व्याख्यागीता अध्याय 9 का श्लोक 17 इस सारे जगत को धारण करने वाले सत चित आनंद एक प्रभु ही है (जैसे कपड़े पहनते हो आप वह आपने ही धारण (धाता) कर रखे हैं अपने शरीर के ऊपर) ऐसे ही प्रभु ने अपने अन्दर ही पूरे युनिवर्स को धारण कर रखा है और जितने भी लोग आपको सुखी व दुखी दिखाई दे रहे हैं वह उनके चिरकाल से चले आ रहे कर्मों का फल है, पाप पुण्य का फल व सुख दुख जन्म सब कर्मों के हिसाब से भगवान ने दे रखे हैं। सम्पूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति प्रकृति के तत्वों से हुई है इसलिए सब शरीर के पिता ब्रह्म ही है और ब्रह्म परमात्मा से उत्पन्न हुए हैं इस लिए प्रजा का पितामह भी परमात्मा ही है। कर्मों के हिसाब से जन्म देना इसलिए माता भी मैं ही हूँ। कोई भी शुभ कार्य की शुरूआत करते हैं तो सबसे पहले ओंकार का उच्चारण करते है और ओंकार का उच्चारण कैसे होता है वह हमारे तीनों वेदों में बता रखा है भगवान कह रहे हैं वह तीनों वेदों ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद व ओंकार मैं ही हूँ। परम विराट ही सर्वत्र दिशाओं में दृश्य व अदृश्य रूप में कण कण में विराजमान है। आप शांत व स्थिर होकर महसूस करो।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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