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ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ये यजन्तो मामुपासते।
एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम्।।
अर्थ अनेक साधक ज्ञान यज्ञ के माध्यम से समग्र एकीभाव से मेरे ध्यान में लीन होते हैं, मेरी उपासना करते हैं। उनके सिवाय कई साधक ऐसे होते हैं, जो स्वयं को अखंड मानकर मेरे विराट रूप की अवधारणा करते हैं, अर्थात समस्त संसार को मेरा विराट रूप मानकर भक्तिपूर्वक सेवा करते हैं व्याख्यागीता अध्याय 9 का श्लोक 15 ज्ञान योगी साधक ज्ञान यज्ञ से अर्थात विवेक के द्वारा असत् का त्याग करते हुए सब दिशाओं में व्याप्त, परमात्मा को और अपने आत्मा को एक मानते हुए मेरे निर्गुण निराकार (जिसका कोई आकार नहीं) स्वरूप की ध्यान की अनंत गहराई में डूब कर और किसी के भाव भीतर नहीं रहते सिर्फ आत्मा को परम आत्मा में मिला कर प्रभु का पूजन करते हैं, वह ज्ञान योगी का ज्ञान यज्ञ कहा जाता है और दूसरे साधक जो मूर्ति पूजा भजन कीर्तन के हिसाब से अलग-अलग रूपों में उपासना करते हैं, वह भी साधक उपासना तो मेरी ही करते हैं लेकिन वह अपने से अलग प्रभु को मानते हैं। अर्थात अपनी आत्मा से अलग परम आत्मा को मानकर भजते हैं। लेकिन भगवान अर्जुन को बता रहे हैं कि इस सम्पूर्ण ब्रह्म में सब जगह हर तत्व में मेरा ही रूप प्रकाश बन कर चमक रहा है। सारे भेद पर्दों के है, अगर सब पर्दे हट जाऐ तो जो भीतर है वह एक ही है, जैसे हम सब मकानों को गिरा दें, तो सभी मकानों के भीतर जो आकाश प्रकट होगा वह एक है। बहुत सारे लोगों को जब आप कहते हो आकाश देखो, तो सभी ऊपर आसमान की तरफ ही देखते हैं, परन्तु यह जो आकाश है यह ऊपर-ऊपर ही नहीं है यह नीचे भी है हमारे सामने भी है, सब मकानों के बाहर-भीतर भी है लेकिन हम सबको यह आकाश अलग-अलग मालूम पड़ता है कि हमारे घर का आकाश और पड़ोसी के आंगन का आकाश अलग होगा, आकाश एक ही है यह तो दिवारें खिंचने से हमें अलग-अलग मालूम पड़ता है। जैसे कोेई दीवार लाल है कोई हरी है कोई नीली तो कोई पीली कोई घर छोटा है, कोई बड़ा, कोई झोंपड़पटी है तो कहीं महल, इन सब की दिवारें हैं वह अलग-अलग है, वह अलग रंग की और छोटी-बड़ी है, लेकिन इन सब के भीतर जो आकाश है वह एक है, बाहर से सबका परिचय अलग-अलग है भीतर से सभी एक है। कृष्ण कहते हैं चाहे अपनी आत्मा के साथ एकीभाव से युक्त होकर मेरी उपासना करें और चाहे अपने से मुझ परमात्मा को अलग मानकर उपासना करे, अगर गहरे में जाओगे तो गहरे में मैं एक ही हूँ। जैसे आप सागर में छलांग लगाओ और सागर के भीतर आपके ऊपर नीचे सब दिशाओं में सागर का पानी ही पानी होगा वैसे ही इस सम्पूर्ण जगत में परमात्मा आपके सब दिशाओ में परिपूर्ण और एक ही है सागर रूप में।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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