महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः।
भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्ययम्।।
सततं कीर्तयन्तो मां यतन्तश्च दृढव्रताः।
नमस्यन्तश्च मां भक्त्या नित्ययुक्ता उपासते।।
भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्ययम्।।
सततं कीर्तयन्तो मां यतन्तश्च दृढव्रताः।
नमस्यन्तश्च मां भक्त्या नित्ययुक्ता उपासते।।
अर्थ हे पार्थ! महात्मा दैवी प्रकृति का आश्रय लेकर, अनन्य मन से मुझे भजते हैं, और मैं ही भूत-समुदाय का आदि और अविनाशी हूँवे सदा मेरा ही ध्यान करते हुए मेरा भजन करते हैं और मननशील व्रतों के साथ मुझे ध्यान में रखते हैं। वे नित्ययुक्त होकर भक्ति से मुझे नमस्कार करते हैं और उपासना करते हैं। व्याख्यागीता अध्याय 9 का श्लोक 13-14
पिछले श्लोक में कृष्ण ने ज्ञान बताया कि जो आसुरी प्रकृति का आश्रय लेने वाले मूढ लोग व्यर्थ आशा, व्यर्थ कर्म और व्यर्थ ज्ञान में पड़े रहते हैं यह तीनों सत् फल देने वाले नहीं।
श्री कृष्ण कहते हैं परन्तु दैवी प्रकृति के आश्रित अनन्य मन वाले महात्मा को सब ज्ञान होता है और उनको पता होता है कि सम्पूर्ण जगत को बनाने वाले परमात्मा ही आदि और अविनाशी है, बाकी यह जगत तो नाशवान है, इसलिए दैवी प्रकृति के साधक अनन्य मन से यानि और किसी भी वस्तु या व्यक्ति का मनन चिंतन ना करना अनन्य भक्ति, अनन्य भाव होता है, दैवी प्रकृति के आश्रित साधक नित्य-निरंतर प्रेम पूर्वक परमात्मा का ही ध्यान कीर्तन करते हुए निरंतर परमात्मा की उपासना करते हैं।
जैसे लोगों ने एक धारणा बना रखी है, कि सुबह-शाम भगवान को याद करो तो भगवान मुक्ति दे देंगे, मुक्ति अगर इतनी सस्ती होती तो अब तक सब लोग इस दुःख रूप संसार से अपना पीछा छुटा जाते, लोग भगवान की भक्ति में भी होशियारी दिखाते हैं जैसे लोग संसार के लोगों के साथ चालाकी करते हैं, ऐसे ही भगवान के आगे चालाकी करते हैं, सुबह-सुबह काम पर जाने के लिए भागते हुए घर में बने मंदिर में खड़े-खड़े ही भगवान को याद करके भाग जाते हैं, वह भी भगवान को याद करने के लिए भगवान के आगे हाथ नहीं जोड़ते, वह एक मिनट भगवान के आगे प्रार्थना करते हैं उस एक मिनट में भी वह मांग ही करते हैं कि मेरा आज का दिन अच्छा जाए, मुझे ये मिले मुझे वह मिले ऐसी सैकड़ो मांगे होती हैं लोगों की और इतने जल्दी में रहते हैं और वह यह भी दिखाते हैं कि हम रोज भगवान को याद करते हैं अपनी मांग में भी वह अपने को भक्त दिखते हैं और कुछ लोगों के पास तो इतना भी समय नहीं, इसलिए उन्होंने घर पर भक्ति करने के लिए नौकर भी रख-रखें हैं यानि पूरे महीने पूजा-पाठ कर जाने के लिए पुजारी से डील कर रखी है कि तुमको महीने की इतनी सैलरी मिलेगी तुम हर रोज मेरे घर पर आकर प्रार्थना कर जाना। ऐसे व्यक्तियों ने भगवान से भी चालाकी करनी सीख रखी है परन्तु यह चालाकी आपके बाजार में चलती हैं, परमात्मा के आगे यह चालाकियां नहीं चलेंगी, क्योंकि परमात्मा आपके भीतर है तुम पूरी दुनिया को धोखा दे सकते हो परन्तु परमात्मा आपकी सांसो से भी ज्यादा नजदीक है।
कृष्ण कहते हैं जो सुबह-शाम भक्ति का दिखावा करते हैं उनको मैं प्राप्त नहीं होता, मुझको प्राप्त करने वाले साधक तो नित्य यानि हर रोज और निरंतर यानि हर क्षण, प्रेम पूर्वक लगन से मेरे ध्यान में लगे हैं मैं उनको ही प्राप्त होता हूँ। दृढ़वृति होकर लगन पूर्वक निरंतर उपासना का अर्थ है कि अपने आप को परमात्मा के समर्पण कर देना, फिर चाहे सुख मिले या दुःख वह दृढ़ निश्चय करके निरंतर परमात्मा के ध्यान में अटल स्थिर रहते हैं।
देवी प्रकृति के साधक अपने कल्याण के लिए ही सब कर्म करते हैं, कल्याण का ही ज्ञान लेते हैं, परमात्मा को प्राप्त करने की ही आशा करते हैं।