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अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम्।
परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम्।।
अर्थ अज्ञानी लोग मेरे सभी प्राणियों में परम परमेशवर के स्वरूप को नहीं समझते हैं। जब मैं मनुष्य रूप में अवतरित होता हु तो वे मुझे मानव शरीर के आश्रित मानकर, अर्थात साधारण मनुष्य के रूप में देखते हैं और मेरी अवज्ञा करते हैं व्याख्यागीता अध्याय 9 का श्लोक 11 प्रभु के भावों में यह सम्पूर्ण भव सागर बसा है, लेकिन मूढ लोग जिन्होंने शरीर तो मानव का धारण कर रखा है लेकिन उनके भाव (विचार) पशुओं जैसे हैं, ऐसे मूढी लोग अपने ‘मैं’ के अहंकार से, सम्पूर्ण मानव जाति को बनाने वाले ईश्वर को तुच्छ समझते हैं, परमात्मा ने अपना रूप कृष्ण की देह में रच रखा था, लेकिन कृष्ण के शरीर को देख कर मूढ लोग, जिनको आत्मा का पता नहीं वह अज्ञानी व्यक्ति परमेश्वर को साधारण शरीर वाला मनुष्य ही मानते हैं। कृष्ण कहते हैं मैं मनुष्यों के सामने मनुष्य रूप में खड़ा हो जाऊँ तो मूढ लोग मुझ परम को तुच्छ समझते हैं, उन मूढ मनुष्य को कह दें कि मैं ही परमात्मा हूँ, तो वह कहते हैं अरे भाई तुम तो आदमी ही हो मेरे जैसे तुम भगवान कैसे हुऐ और भगवान कहते हैं मैं लोगों के सामने ना आऊँ तो वह कहते हैं, जरा सामने तो आओ छलिये, यानि वह कहते हैं जरा सामने तो आओ प्रकट हो जाओ और अगर मैं प्रकट हो जाऊँ तो वह कहते तुम तो ठीक हमारी तरह हो। आपके सामने भी भगवान हो तो आप भी नहीं पहचान पाते क्योंकि मनुष्य का अहंकार इतना है कि जो अपने से श्रेष्ठ हो उस को देख पाना बहुत कठिन है, अगर कृष्ण आपके सामने खड़े हो तो आपको वह आदमी ही दिखाई पड़ेगा भगवान दिखाई नहीं पड़ेगा और आप पूरा जोर लगाकर सिद्ध भी करोगे कि यह भगवान नहीं है, आप कहोगे कल मैंने इसको पानी पीते देखा और यह खाना भी खाता है और इसको पसीना भी आता है, तो यह भगवान कैसे हो सकता है, आप हजार कसौटियां रखोगे इस बात को सिद्ध करने में कि यह भगवान नहीं है और यही मनुष्य की मूढता है मूढता का मुख्य केन्द्र है मनुष्य का अहंकार, जब भी कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की निंदा करता है, तो निंदा करने व सुनने वाले व्यक्ति को भीतर बड़ी खुशी मिलती है, आपके भीतर फूल खिल उठते हैं, खुशी की वर्षा होने लगती है आप कहते हो मुझे तो पहले ही पता था कि यह आदमी गंदा है और जब भी कोई किसी की अच्छाई की तारीफ करता है, तो सुनने वाले व्यक्ति को पीड़ा होने लगती है, कारण कि मनुष्य को अहंकार है वह अपने से ज्यादा श्रेष्ठ किसी को देख नहीं पाते और यही मूर्ख लोगों की मूढता है। जब राम आये थे, जब कृष्ण आऐ थे तब के लोगों को पता नहीं चला था कि यह भगवान है, लोगों को पता लगाने की जरूरत ही नहीं पड़ी कारण कि वह लोग कहते थे कि पता लगाने की जरूरत ही नहीं हमें पता है कि यह भगवान नहीं हमारे जैसे ही इंसान है। राम, कृष्ण, नानक, कबीर, जीजस जैसे लोगों को लोगों ने मरने के बाद ही भगवान माना, जिंदा को नहीं मानते, मरने के बाद में बहुत आसानी हो जाती है, क्योंकि अब तुलना नहीं करनी, अब तो उनका मनुष्य रूप तीरोहित हो गया अब मानने में कोई हर्ज नहीं, जब होते हैं सामने तब तो अपने जैसा ही शरीरधारी मानते हैं और जब चले जाते हैं तब तो यह भी कथाऐं लिखते हैं कि उनका शरीर मनुष्यों जैसा नहीं था और पूरी कोशिश भी करते हैं कि उनको मनुष्य जैसा साधारण रूप ना दें, यही मनुष्य की मूढता है, इस लिए कृष्ण कहते हैं मूढ मनुष्य की तुच्छ समझने वाली दृष्टि, मुझ ईश्वर को अगर सामने खड़ा हो जाऊँ तो भी तुच्छ ही समझती है, यही मूढता मनुष्य को और डूबाती चली जाती है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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