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समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः।
ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम्।।
अर्थ मैं समस्त भूतों में समान हूँ, समस्त भूतों में ना कोई मेरा द्वेषी है और न ही कोई प्रिय है। परन्तु जो मुझे भक्ति से पूजते हैं, वे मेरे में हैं और मैं उनमें हूँ व्याख्यागीता अध्याय 9 का श्लोक 29 पिछले अध्याय में भगवान ने बताया उससे कुछ लोगों को शंका होती है कि भगवान के समर्पित होते हैं उनको भगवान मुक्त करते हैं, बाकि को मुक्त नहीं करते, इसमें यह हुआ कि भगवान पक्षपाती है दयालू नहीं, इस पर भगवान कहते हैं कि मैं सम्पूर्ण प्राणियों में समान हूँ, उन प्राणियों में न तो कोई मेरा द्वेशी है और ना ही कोई प्रिय है। जैसे बादल घनघोर बारिश कर रहें हैं उस वर्षा में दो घड़े रख रखे हैं एक घड़ा उल्टा है और एक घड़ा सीधा रख हुआ है। अब बारिश तो दोनों पर समान बरस रही है जो उल्टा घड़ा है उसपे कितनी भी वर्षा होती रहे उसमें पानी नहीं भरेगा और जो सीधा रखा हुआ है वह भर जाएगा अब इसमें बारिश का कोई कसूर नहीं घड़ा ही उल्टा है। ऐसे ही परमात्मा की बारिश तो नित्य-निरन्तर सब पर बरस रही है, परमात्मा के लिए सब समान है, लेकिन जिसने अपना घड़ा सीधा रख रखा है यानि श्रद्धा भाव से प्रेम पूर्वक भगवान के ध्यान में लगे हुए हैं उन भक्तांे की आत्मा परमात्मा में युक्त है, उनमें और परमात्मा में फिर फर्क नहीं रह जाता, इसलिए कृष्ण कहते हैं जो प्रेम से मेरा ध्यान करते हैं वह मुझमें और मैं उनमें युक्त हूँ, आत्मा में विलीन हो जाना ही ईश्वर प्राप्ति है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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