तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्।।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्।।
अर्थ इसलिए, तुम निरंतर मुझे स्मरण करते हुए युद्ध के कर्तव्य को भी पूरा करो। ऐसे मुझमे मन और बुद्धि समर्पित किये हुए तुम निश्चित ही मुझे ही प्राप्त करोगे व्याख्यागीता अध्याय 8 का श्लोक 7
भगवान कहते हैं अर्जुन को कि तू सब समय में (हर पल हर क्षण) निरन्तर (लगातार) मेरा स्मरण कर और युद्ध भी कर।
शरीर से युद्ध करता हुआ, मन बुद्धि से स्मरण करता हुआ, अगर युद्ध में मारा गया तो मुझको ही प्राप्त होगा।
श्री कृष्ण कहते हैं कि तू हर समय निरन्तर मेरा स्मरण कर अर्थात हर मनुष्य के लिए सावधान होने की जरूरत है कि वह हर समय में परम प्रभु का स्मरण करे, कोई भी खाली समय ना जाने दे, क्योंकि अन्तकाल का पता नहीं कब आ जाये, सत्य तो यह है कि सब समय अन्तकाल ही है, यह बात तो है नहीं कि इतने साल, इतने महीने और इतने दिन बाद मृत्यु होगी। देखने में तो यही आता है कि गर्भ में भी कई बालक मर जाते हैं, कई जन्मते ही मर जाते हैं, और कोई कुछ दिनों में, तो कोई महीनों और कुछ सालों में मर जाते हैं। इस प्रकार मृत्यु की नियति (समय) हर दम चलती रहती है। सब समय में परम प्रभु को याद रखना चाहिए और यही समझना चाहिये कि बस यही अन्तकाल है। इसलिए भगवान कहते हैं कि तू हर क्षण मुझको याद कर और युद्ध भी कर, हर पल प्रभु का स्मरण सम साधना ध्यान योग के अभ्यास से होता है। स्मरण जैसे ड्राइवर गाड़ी चलाता है, तब हाथ से गियर बदलता है, पैर से क्लच, ब्रेक, दूसरे हाथ से स्टेयरिंग, नजरों से आगे व पीछे भी ध्यान रखता है, ड्राइवर का सब चीजों पर एक साथ ध्यान रहता है। वैसे ही दूसरा उदाहरण लेते हैं कि औरतें बातें करते करते खाना बना लेती हैं, और जैसे आपने देखा होगा गांवों में औरतें इकट्ठी होकर कुएँ से पानी भरकर सर पर पानी का घड़ा लेकर चलती हैं तो अपने दोनों हाथ खुला रखती हैं। दूसरी स्त्रीयों से बातें भी करती हैं, चलती भी हैं, ध्यान घड़े पर भी रखती हैं। ऐसे ही सम्पूर्ण क्रियाओं में चाहे आप नहा रहे हो, खाना खा रहे हो, चल रहे हो, बैठे हो, घर हो या ऑफिस कोई भी कार्य करें, हर पल हर कार्य के साथ प्रभु का चिन्तन करते रहें, कोई भी पल अन्तकाल हो सकता है। जैसे फोटो लास्ट विचार की खींचेगी वही मिलेगा, भगवान कह रहे हैं अर्जुन को कि मेरा चिन्तन भी कर युद्ध भी कर, मृत्यु कब आ जाये मनुष्य को कुछ पता नहीं रहता, इसलिए अपने मन को निर्मल बनाये रखते हुए हर समय सावधान रहना चाहिए और परमात्मा का नित्य निरन्तर स्मरण करते रहना चाहिए।
इस प्रकार योग में युक्त साधक परमधाम को प्राप्त हो जाता है।