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अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्।
यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्रसंशयः।।
अर्थ अन्तकाल पर मुझे ही स्मरण करके शरीर को छोड़कर जो कोई जाता है, वह मेरे भाव ( परम स्वरूप ) को प्राप्त होता है, इसमें कोई संदेह नहीं है व्याख्यागीता अध्याय 8 का श्लोक 5 जो पुरूष अन्त काल में (मृत्यु के समय) निर्गुण निराकार परम प्रभु का स्मरण (ध्यान) करता हुआ शरीर को त्याग जाता है वह मेरे आत्म स्वरूप (परम) को ही प्राप्त होता है, इसमें कोई भी शंका नहीं। भगवान कह रहे हैं कि जीवात्मा चाहे ब्रह्म का कोई चिन्तन करे चाहे अधिभूत (शरीर) का चिन्तन करता हुआ जाये चाहे मेरा स्मरण करता जाये, जिसका भी अन्त समय में स्मरण करता देह को छोड़ता है उसको ही प्राप्त होता है, भगवान कहते हैं अन्त समय में मेरा स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग कर जाता है वह मुझको ही प्राप्त होता है। अंत समय में वही व्यक्ति भगवान का स्मरण कर पायेगा जो पूरे जीवन भगवान का स्मरण करेगा, ऐसा तो है नहीं कि पूरे जीवन तो धन और वासना के पीछे भागा और अंत में भगवान को याद करेगा, यह मनुष्य के मन की साइकोलॉजी है कि जैसा उसने जीवन जिया है अंत में वैसे ही विचार उसके मन में रहते हैं, इसलिए अंत में अगर आप को परम में विलीन होना है तो, मैं यह नहीं कहता कि तुम हर रोज परमात्मा का ध्यान करो मैं तो यह कहता हूँ हर रोज नहीं, हर क्षण तुम परमात्मा का स्मरण रखो, क्योंकि अंत समय का पता नहीं कब आ जाये।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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