धूमो रात्रिस्तथा कृष्णः षण्मासा दक्षिणायनम्।
तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तते।।
शुक्लकृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते।
एकया यात्यनावृत्तिमन्ययाऽऽवर्तते पुनः।।
तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तते।।
शुक्लकृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते।
एकया यात्यनावृत्तिमन्ययाऽऽवर्तते पुनः।।
अर्थ जिस मार्ग में, धूम का अधिपति, कृष्ण पक्ष का अधिपति, और छः महीनों वाले दक्षिणायन का अधिपति होता है। उस मार्ग से जाने वाले योगी को सकाम मनुष्य बनना पड़ता है और चन्द्रमा की ज्योति को प्राप्त होकर वापस लौट आना पड़ता है। इससे वह जन्म-मरण के चक्र में फंस जाता है। यहाँ, शुक्ल और कृष्ण - ये दोनों गतियाँ, अनादि काल से ही मानी गयी हैं और मानव जीवन से गहरा संबंध है। इसलिए, एक गति में जाने वाले को वापस नहीं लौटना पड़ता है, जबकि दूसरी गति में जाने वाले को लौटना पड़ता है व्याख्यागीता अध्याय 8 का श्लोक 25-26
जो दुःख से मुक्त होना चाहता है वह सुख चाहता है और जिसको परम ज्ञान हो गया वह सुख-दुःख दोनों से मुक्त होना चाहता है,वह परम आनंद चाहता है। अग्नि ऊपर की तरफ बढ़ती है तो ज्योति बन जाती है ज्योति और ऊपर बढ़ती है दिन बन जाती है,दिन और ऊपर बढता है तो शुक्ल पक्ष बन जाता है। अग्नि बीच में है,ऊपर बढ़ती है तब ज्योति बन जाती है और नीचे की तरफ है तो धुआँ बन जाती है,वासना में जितना नीचे गिरेगा धुआँ उतना ही बढेगा धुऐं का अर्थ है चित की स्वछता खो जाना।
अग्नि जब तक है जलन से भरा हुआ बोध होगा यानि अहंकार का अनुभव होगा लेकिन जैसे ही अग्नि ज्योति बनेगी वैसे ही अहंकार कम हो जाएगा,और जैसे ही ज्योति दिन बनेगी वैसे ही अहंकार बिल्कुल बिखरा-बिखरा हो जाएगा और जब दिन भी शीतल शुक्ल पक्ष बनने लगेगा तो उधर चांद बड़ा होने लगेगा और अहंकार क्षीण होने लगेगा और जिस दिन पूर्णिमा का चांद पूर्ण होगा उस दिन अहंकार शून्य हो जाएगा।
शुक्ल पक्ष में जैसे प्रकाश के बढ़ने के पन्द्रह क्रम होते हैं वैसे ही पन्द्रह क्रम कृष्ण पक्ष के होते है, अंधेरी रातों का बढ़ता हुआ क्रम अमावस की तरफ यात्रा,फिर हर रोज रात और अंधेरी होने लगती है और चांद की रोशनी रोज-रोज कम होने लगती है वैसे-वैसे जगत खोता चला जाता है,जैसे पूर्णिमा की रात्री अहंकार शून्य हो जाता है परमात्मा पूर्ण हो जाता है ठीक वैसे ही अमावस की रात्री अहंकार पूर्ण हो जाता है और परमात्मा विचारों में शून्य हो जाता है।
जब अज्ञान के अंधकार का अहंकार भीतर होता है तब तक संसार से कोई मुक्त नहीं होता,जब ज्ञान का प्रकाश पूर्ण हो जाता है पूर्णिमा की तरह यानि चेतना ऊपर की तरफ बड़ी हो नीचे वासना की तरफ ना गिरी हो ऐसा व्यक्ति मृत्यु के बाद लौटकर संसार में नहीं आता। सूर्य से उत्तरायण और दक्षिणायन बनते हैं और चन्द्रमा से देवयान और पितरयान (शुक्ल पक्ष व कृष्ण पक्ष) बनते है और पृथ्वी से दिन रात बनते हैं।