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यत्र काले त्वनावृत्तिमावृत्तिं चैव योगिनः।
प्रयाता यान्ति तं कालं वक्ष्यामि भरतर्षभ।।

अग्निर्ज्योतिरहः शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम्।
तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः।।
अर्थ हे भरतवंशियों में श्रेष्ठ अर्जुन, उस काल को मैं तुम्हें कहूँगा जब योगी शरीर छोड़कर जाते हैं, वह या तो वापस नहीं आते (अनावृत्ति) या फिर वापस आते हैं (आवृत्ति)। उस समय में, जिसमें अग्नि का अधिपति, दिन का अधिपति, शुक्ल पक्ष का अधिपति, और उत्तरायण के छः महीने का अधिपति होता है। वह योगी, जो इस मार्ग से शरीर छोड़ता है, वह पहले ब्रह्मलोक को प्राप्त होता है, और फिर ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है व्याख्यागीता अध्याय 8 का श्लोक 23-24 मनुष्य के भीतर का समय विचार से भरा हो,वासना से भरा हो तो व्यक्ति मरकर वापस संसार में लौट आता है,और अगर भीतर समय हो और विचार ना हो यानि विचार शून्य हो उस क्षण में मरा हुआ व्यक्ति मरकर फिर संसार में लौट कर नहीं आता। क्या कभी आपने अपने मन में ऐसा क्षण जाना है कि जब अतीत भी ना हो और भविष्य भी ना हो बस आप अभी हो इसी क्षण में विचार शून्य,यदि ऐसे क्षण में मृत्यु हो जाए तो लौटकर नहीं आते। भीतर का जो समय है वह सदा ही वासना से भरा है अगर आप भीतर का स्मरण करें तो ख्याल में आ जाएगा कि आपने अपने भीतर के वर्तमान क्षण को कभी जाना ही नहीं,भीतर या तो आप अतीत में रहते हो या भविष्य में,भीतर तो आप अतीत को जानते हो वही यादें छाया कि तरह आपका पीछा करती हैं जो बीत चुका है,हर समय उसकी ही जुगाली करते रहते हैं जैसे पशु जुगाली करते हैं बस वही विचार आपके मन में चलते रहते हैं, जो हो चुका उसी को बार-बार सोचते रहते हैं,जो समय जा चुका वह समय मर चुका और उसको याद कर-कर के आप वर्तमान के समय को भर देते हैं, अभी इसी समय मौजूद क्षण को अतीत की यादें ढक देता है तब वर्तमान का क्षण भी नष्ट हो जाता है या वर्तमान का क्षण भविष्य की वासना से ढका रहता है यानि क्या करना है क्या पाना है क्या मंजिल बनानी है। या तो अतीत या भविष्य डूबा देता है वर्तमान क्षण को,दोनों हालत में यह क्षण खो जाता है। यह वर्तमान का क्षण मन का हिस्सा नहीं है और जो वर्तमान में सम हो जाता है वह मन से बाहर हो जाता है, भूत व भविष्य में रहता है वह मन में रहता है,जहाँ अतीत समाप्त होता है और भविष्य शुरू नहीं हुआ वह बीच की रेखा वह समय का हिस्सा नहीं वह परम का अकाल क्षण है। बाहर के जगत में जिसको समय कहते हैं वह भीतर के जगत का मन है,जिसको मन से बाहर जाना हो वह समय से बाहर हो जाए वर्तमान ना समय का हिस्सा है ना मन का हिस्सा है वर्तमान परम अस्तित्व है। समय मनुष्य के मन के साथ पैदा हुई वस्तु है जहाँ मन नहीं विचार शून्य है ऐसे क्षण में मरा हुआ व्यक्ति दोबारा लौटकर संसार में नहीं आता,लौटकर आना हो तो भरा हुआ मन चाहिए लौटकर ना आना हो तो खाली मन चाहिये। कुछ लोग बोलते हैं कि बुढ़ापे में भक्ति कर लेंगे अभी क्या जरूरत है,मैं कहता हूँ मृत्यु अचानक आपके द्वार आ गई तो आप अपने को कैसे संभाल पाओगे,पूरे जीवन अगर आप वर्तमान क्षण में रहते रहे तो मृत्यु के क्षण अपने आप को संभाल पाओगे।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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