परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातनः।
यः स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति।।
अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस्तमाहुः परमां गतिम्।
यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम।।
यः स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति।।
अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस्तमाहुः परमां गतिम्।
यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम।।
अर्थ ब्रह्म के उस व्यक्त और अव्यक्त से परे एक नित्य (शाश्वत ) परम है। वह सभी भूतों में नष्ट होने परखुद नष्ट नहीं होता ।
उस अव्यक्त को अक्षर कहा गया है और उसे परम गति कहते हैं। जिसको प्राप्त होकर मनुष्य वापस नहीं लौटते, वही मेरा परम धाम है व्याख्यागीता अध्याय 8 का श्लोक 20-21
उस अव्यक्त से भी परे अर्थात एक अव्यक्त है ब्रह्म जिसके दिन में प्रकृति की उत्पत्ति होती है,और रात्री में सारी प्रकृति ब्रह्म में लीन हो जाती है,इस अव्यक्त से परे दूसरा विलक्षण (अन्य) जो सनातन अव्यक्त भाव रूप है वह परमात्मा सब भूतों के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होता,भगवान कहते हैं जो अव्यक्त अक्षर कहा गया है उसी को परम गति कहा गया है।
पहला अव्यक्त ब्रह्म है जिसमें सम्पूर्ण जगत रचा है,इसकी अवधि है काल की एक हजार चतुर्युगी दिन की इतनी ही रात्री की,इस अव्यक्त ब्रह्म तक सभी लोग पुनरावर्ति (जन्म मरण) है। और दुसरा अव्यक्त सनातन रूप है, जिसको अक्षर नाम से कहा गया है,इस अव्यक्त में ब्रह्म भी रचा हुआ है,इस अव्यक्त को परम गति कहा गया है। इसको प्राप्त होकर जीव दोबारा संसार में जन्म नहीं लेता, भगवान कहते हैं कि वह मेरा परम धाम है अर्थात सत चित आनंद परमात्मा का निर्वाण धाम है,इस परम को प्राप्त होकर जीव मोक्ष को प्राप्त हुआ कहते हैं। ब्रह्म अव्यक्त में बार-बार जन्म लेता है क्योंकि यह सब लोक काल (समय) की अवधि वाले हैं। परम अव्यक्त,काल से बाहर है उसी को परम गति कहा गया है वही परमात्मा का परम धाम है।
परम धाम हर व्यक्ति के भीतर है, यह वैकुंठ प्रत्येक के भीतर है,कृष्ण इसको परमधाम इस लिए कहते हैं कि यह पड़ाव नहीं है कि इस पर आ कर फिर आगे की तैयारी करनी पड़ती हो, इस पर आकर सारी यात्राएं समाप्त हो जाती हैं,परम धाम का यह अर्थ नहीं कि आप बहुत-सी यात्रा करके पहुंच गए,अगर आप बहुत-सी यात्रा करके पहुंचे हैं तो वह परमधाम नहीं सिर्फ धाम ही है।
परमधाम तो वह है अपने भीतर जहाँ पहुंच कर पता चले कि जहाँ मैं सदा से ही था,परम धाम वह है जो अभी भी हमारे साथ है और हमें पता ही नहीं,परमधाम का अर्थ है ऐसी मंजिल जो हमें मिली हुई है और हमें पता ही नहीं है।