सहस्रयुगपर्यन्तमहर्यद्ब्रह्मणो विदुः।
रात्रिं युगसहस्रान्तां तेऽहोरात्रविदो जनाः।।
अव्यक्ताद्व्यक्तयः सर्वाः प्रभवन्त्यहरागमे।
रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके।।
भूतग्रामः स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते।
रात्र्यागमेऽवशः पार्थ प्रभवत्यहरागमे।।
रात्रिं युगसहस्रान्तां तेऽहोरात्रविदो जनाः।।
अव्यक्ताद्व्यक्तयः सर्वाः प्रभवन्त्यहरागमे।
रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके।।
भूतग्रामः स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते।
रात्र्यागमेऽवशः पार्थ प्रभवत्यहरागमे।।
अर्थ जो मनुष्य ब्रह्मा के एक हजार चतुर्युगी वाले एक दिन को और एक हजार चतुर्युगी वाली एक रात्रि को जानते हैं, वे योगीजन काल के तत्त्व को जानने वाले हैं। ब्रह्मा के दिन के आरम्भ काल में अव्यक्त ब्रह्म के सूक्ष्म शरीर से सम्पूर्ण शरीर पैदा होते हैं और ब्रह्मा की रात के आरम्भ काल में उस अव्यक्त नाम वाले ब्रह्मा के सूक्ष्म शरीर में ही सम्पूर्ण शरीर लीन हो जाते हैं। हे पार्थ ! प्राणी उसी ब्रह्मा के दिन के आगमन के साथ सामुदायिक उत्पन्न होकर सवभाव के वशीभूत हुआ ब्रह्मा की रात्रि के समय में स्वतः पुनर्जन्म के लिए उसीमे लीन होता है व्याख्यागीता अध्याय 8 का श्लोक 17-19
सतयुग,त्रेतायुग,द्वापरयुग,कलियुग इन चार युगों को एक चतुर्युगी कहते हैं,ऐसी एक हजार चतुर्युगी बितने पर ब्रह्मा जी का एक दिन होता है,और ऐसी ही एक हजार चतुर्युगी बितने पर ब्रह्मा जी की एक रात होती है।
इस प्रकार काल के तत्व को जानने वाले मनुष्य ब्रह्मलोक तक के भोगों को चिह्नमात्र भी महत्त्व नहीं देतें।
ब्रह्मा का दिन और रात सूर्य से नहीं होते युगों से होते हैं। इसी अध्याय के श्लोक सोलह में भगवान ने कहा ब्रह्मलोक तक के सभी लोग पुनरावर्ति है,क्योंकि यह लोक काल (समय) की अवधि में है और ब्रह्म की अवधि कितनी भी बड़ी क्यों ना हो वह काल के अन्तर्गत ही है,परमात्मा काल की अवधि में नहीं। वह कालातीत है यानि रूका हुआ समय।
ब्रह्म के दिन के आरम्भकाल में अर्थात रात के बाद जब दोबारा दिन की शुरूआत होती है यानि ब्रह्म की उत्पत्ति के समय सम्पूर्ण शरीर (सभी जीवों के शरीर) अव्यक्त से व्यक्त होते हैं। अव्यक्त = अदृश्य,व्यक्त = दृश्य
जैसे हम रात को सोते हैं, नींद आ जाने पर यह सृष्टि जीव में ही लीन हो जाती है यानि संसार को भूल जाते हैं और सुबह जागते हैं तो संसार दोबारा याद आ जाता है,ऐसे ही ब्रह्म की रात में सम्पूर्ण सृष्टि ब्रह्म के अव्यक्त में लीन हो जाती है दिन में अव्यक्त से व्यक्त हो जाती है।
भगवान कहते हैं पार्थ वही यह जीव जो हर युग व हर ब्रह्म के दिन में जन्मता मरता है,यह जीव प्रकृति की माया के वश में हुआ अपनी आसक्तियों से बंध कर बार-बार जन्म लेता है व मरता है। एक हजार चतुर्युगी में जीव पता नहीं कितनी ही बार जन्मता मरता है। सन्तों ने लख चौरासी बहुत कम बताया,वह इस लिए की ज्यादा बताने से आप भयभीत ना हो जाओ।
जीव एक हजार चतुर्युगी में चाहे अरबों बार जन्में मरे फिर रात्रि में सभी जीव,ब्रह्म के अव्यक्त में सब लीन हो जाते हैं,ब्रह्म के रात का समय पूरा होते ही जैसे ही जीव की उत्पत्ति होगी वह जीव वहीं से पहले वाले दिन की इच्छाओं को दोबारा पकड़ कर उससे आगे फिर भोग के पीछे भागना शुरू कर देता है, यह वही जीव है सभी जो हमेशा से भाग रहे हैं,इस जीव ने खुद ही कभी ना खत्म होने वाला खेल को रच रखा है,मुक्ति ही दुखों का नाश कर सकती है हमेशा-हमेशा के लिए।