आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन।
मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते।।
मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते।।
अर्थ हे अर्जुन! इस संसार में ब्रह्मलोक तक के लोक भी पुनरावृत्ति (आवागमन) वाले होते हैं, लेकिन हे कौन्तेय! मुझे प्राप्त होकर पुनर्जन्म नहीं होता व्याख्यागीता अध्याय 8 का श्लोक 16
हे अर्जुन! ब्रह्मलोक तक सभी लोक पुनरावृति वाले है इस ब्रह्म (ब्रह्माण्ड) में जितने भी लोक है जहाँ जीवन है, उन लोकों में जन्म पुनरावृति है अर्थात मनुष्य के कर्मों के हिसाब से उत्तम लोक आदि जगह जन्म लेकर वहाँ का सुख भोग कर जीव को बार-बार इस मृत्यु लोक में जन्म लेना पड़ता है, यानि किसी भी लोक पर जाने पर दोबारा लौटकर संसार में आना पड़ता है,परन्तु भगवान कह रहे हैं कि मुझको प्राप्त होने पर दोबारा जन्म नहीं होता वह कल्याण को प्राप्त होता है।
जहाँ तक लोक है यानि जहाँ तक जगत की परतें हैं वहाँ तक परमधाम नहीं,अंतिम लोक तक ब्रह्मलोक ही है वहाँ तक पुनरावृति होती रहेगी,पुनरावृति बंद होती है जहाँ कोई लोक नहीं बचता वह अलोक है,उस अलोक में प्रवेश ही प्रभु के परम धाम में प्रवेश है,उस में प्रवेश करने के बाद जन्म-मरण नहीं है,परमात्मा को प्राप्त करने के बाद,जिसको प्राप्त करने के लिए जन्म लेना पड़े समय की जरूरत पड़े ऐसा बचता भी तो कुछ नहीं इस ब्रह्मलोक में, परमात्मा को प्राप्त करके सम्पूर्ण प्राप्त कर लेता है।
वहाँ सब कुछ नया है यहाँ सब कुछ बासी है,वहाँ सब कुछ फ्रेश है ताजा जैसे सुबह का फूल खिला रहता है वैसे वहाँ हमेशा फूल खिले रहते हैं कभी मुरझाते नहीं। जैसे गीत की कड़ी गूंजे और गूंजती ही रहे,गूंजती ही रहे, कभी समाप्त नहीं होती वही प्रभु का धाम है।