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मामुपेत्य पुनर्जन्म दुःखालयमशाश्वतम्।
नाप्नुवन्ति महात्मानः संसिद्धिं परमां गताः।।
अर्थ महात्मा लोग जिन्हे मेरी प्राप्ति हो चुकी है वे इस सांसारिक दुखों के घर और सांसारिक संघर्षों से मुक्त हो जाते हैं और अशाश्वत अर्थात निरन्तर परिवर्तनशील पुनर्जन्म से मुक्ति पा लेते हैं क्योंकि उनको परम सिद्धि की प्राप्ति हो गई और और अब वे परम धाम के वासी हैं व्याख्यागीता अध्याय 8 का श्लोक 15 दुःखों के घर यानि पृथ्वी को तो वही प्राप्त होते है जिनमें वासना होती है, वासना के लिए भविष्य चाहिए, अगर भविष्य ना हो तो वासना क्या करेगी, अगर मैं इसी पल मर जाने वाला हूँ तो वासना करना व्यर्थ हो जाएगा, वासना को पूरा करने के लिए जरूरी है कि कल हो, आने वाला दिन हो तो ही हम कर्म करते हैं मंजिल को पाने का प्रयास करते हैं, अगर वासना पूरी करनी हो तो समय के बिना पूरी नहीं हो सकती समय चाहिए वासना पूर्ति के लिए।  
पूरे जीवन हम वासना को पूरी करने की कोशिश करते हैं और मरते क्षण पाते हैं कि कोई वासना पूरी नहीं हुई लेकिन जब जन्में थे वासना लेकर उस से भी ज्यादा वासना बढ़ जाती है मृत्यु के क्षण में, और यही वासना पुनर्जन्म बन जाती है क्योंकि वासना है भीतर मरते क्षण तो फिर और जन्म चाहिए और इसी को कृष्ण कहते हैं पुनर्जन्म ही दुःखों का घर है।  
कामना कभी पूरी नहीं होती, यह ऐसा बर्तन है जो दोनों तरफ से खुला है और तुम इसमें कुऐं से पानी भरो तो यह बर्तन कभी भरेगा नहीं जब पानी में डूबता है तब भरा हुआ दिखाई पड़ता है और जब खिंचते हो ऊपर की तरफ तो बर्तन खाली बाहर आ जाता है और पानी पीछे रह जाता है। ऐसे ही वासना है वासना खाली लौट आती है, मेहनत व्यर्थ हो जाती है।  
कृष्ण इसको दुःखों का घर इसलिए कहते हैं कि जो हम पाना चाहते हैं वह कभी मिलता नहीं और मेहनत बहुत होती है, दुःख नहीं होगा तो क्या होगा, जब तक भीतर वासना रहेगी पुनर्जन्म की यात्रा चलती रहेगी, वही बचपन वही जवानी वही बुढ़ापा वे ही बीमारियां फिर मृत्यु फिर जन्म क्योंकि आप मांग रहे हैं और ध्यान रहे प्रभु वही दे देते हैं जो आप मांग रहें हैं।  
कृष्ण ने इस को अशाश्वत कहा निरन्तर बदलने वाला यह सम्पूर्ण जगत क्षणभंगुर है इस संसार को कोई भी व्यक्ति एक बार नहीं देख पाता देखने मात्र क्षण में भी यह बदल जाता है, क्षण-क्षण करके कब बचपन से जवान और जवान से कब बूढ़े हो कर मर जाते हैं, यहाँ कुछ भी स्थाई नहीं है हर क्षण यहाँ परिवर्तन होता है यह परिवर्तन बहुत सूक्ष्म है इसलिए हमें दिखाई नहीं देता।  
 
जैसे आप नदी में नहाने के लिए पानी के ऊपर पैर रखते हो इतने ही क्षण में नीचे का पानी निकल जाता है और जैसे ही आप पानी में डुबकी लगाते हो उतने में ऊपर का पानी निकल जाता है ऐसे ही यह जीवन क्षणभंगुर है तुम क्षण बोलते हो उस से पहले वह क्षण निकल जाता है।  
श्री कृष्ण कहते हैं जो मुझे प्राप्त होते हैं वह निरन्तर बदलने वाले दुःखाल्य को प्राप्त नहीं होते उनको परम प्रेम की प्राप्ति हो गई है, प्रभु के परमधाम में समय रूका हुआ है वहाँ काल निरन्तर बदलता नहीं क्योंकि वह अकाल मूर्त है यानि रूका हुआ क्षण है मोक्ष में, बस वहाँ एक ही क्षण है मुक्ति में और वह क्षण कभी खत्म नहीं होता हमेशा-हमेशा रहता है वही परमधाम है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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