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अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः।
तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः।।
अर्थ जो अनन्यचेता(अन्य किसी का चिंतन ना करने वाला ) है और हमेशा मुझे स्मरण करता है, उस योगी के लिए, हे पार्थ! मैं सर्वथा सुलभ हूँ। वह योगी हमेशा मेरे साथ जुड़ा रहता है व्याख्यागीता अध्याय 8 का श्लोक 14 कृष्ण कहते हैं कि जो नित्य निरन्तर मेरा स्मरण करते हैं उसको मैं आसानी से प्राप्त हो जाता हूँ, ऐसे चितवाले व्यक्ति को जो हर क्षण मेरे स्मरण में डूबा हुआ है भाव जिसके हृदय में आ गया है, प्राण जिसके भृकुटी में और इन्द्रियां जिसकी संयम हो गई,और जिसके भीतर ओम का नाद गूंजने लगा है ऐसे साधक के लिये प्राप्त होना सुलभ यानि आसान हूँ। बहुत लोग कहते हैं प्रभु को प्राप्त करना बहुत मुश्किल है,जब तक आप सूर्य की तरफ पीठ करके खड़े हो तब तक सूर्य के दर्शन होना मुश्किल है और एक कदम पीछे मुड़ते ही आपकी आंखें सूर्य के दर्शन कर लेती है। ऐसे ही परमात्मा की तरफ पीठ करके आप खड़े हो तो परम प्राप्ति बड़ी दुर्लभ है जन्मों-जन्मों तक दौड़ो,परम प्रभु नहीं मिलेंगे, और ध्यान की गहराई से ऊर्जा को अपने भीतर लौट आने दो,आप उसी क्षण परम के बोध को प्राप्त हो जाओगे।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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