मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय।
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव।।
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव।।
अर्थ हे धनञ्जय ! मुझसे पृथक इस जगत का अन्य कोई भी मूल कारण नहीं है। जैसे सूत के धागे की माला में सुत के धागे की ही मणियाँ पिरोई होती है इसी तरह यह समस्त जगत मुझसे (और मुझ में ही) पिरोया हुआ है व्याख्यागीता अध्याय 7 का श्लोक 7
भगवान कहते हैं पूरा जगत ऐसे प्रकट है जैसे माला के मनिये, जैसे हम माला को देखते हैं तो उसमें मनिये ही दिखाई देते है, उन मनियों का जोड़ है उनके जुड़े रहने का जो आधार है वह मनियांे के भीतर अदृश्य रूप में धागा है, धागे के बगैर माला नहीं बन सकती बिना धागे के मनिये बिखर जाएंगे, ऐसे ही परमात्मा के बगैर यह ब्रह्म नहीं बन सकता इस सम्पूर्ण प्रकृति का आधार परमात्मा है, जैसे माला के मनिये प्रकट है और धागा अप्रकट है और सत्य यही है कि प्रकट है वह अप्रकट पर संभला हुआ है, ऐसे ही यह प्रकट दृश्य संसार अप्रकट आधार ’परा’ प्रकृति से संभला हुआ है
प्रश्न:- क्या यह ब्रह्म ही परमात्मा नहीं है, इस ज्ञान के हिसाब से तो अपरा तथा परा दोनों अलग-अलग हुए कृपया करके बताएं कि ब्रह्म तथा परमात्मा अलग-अलग हैं या एक है ?
उत्तरः- आपको जो पेड़ दिखाई दे रहा है उस पेड़ में आपको तना, शाखा, पत्ते-फूल ही दिखाई दे रहे हैं उस पेड़ का आधार जो भीतर गहरे में अदृश्य रूप से जो जड़ें हैं, वह दिखाई नहीं दे रहा, जड़ के बगैर पेड़ बन नहीं सकता, जड़ के बगैर पेड़ खड़ा नहीं हो सकता, जड़ को उखाड़ दो पेड़ गिर जायेगा और पेड़ को काट दो, जड़ फिर से पेड़ बन जायेगी, पेड़ तो जड़ का फैलाव है आधार जड़ ही है, ऐसे ही परमात्मा का फैलाव प्रकृति है जैसे पेड़ हमारे देखने में आता है जड़े अदृश्य है, ऐसे ही प्रकृति हमारे देखने में आती है परमात्मा अदृश्य है, दृश्य का आधार अदृश्य ही है।
अब इस बात को और गहरे में समझे की प्रकृति और परमात्मा एक ही है जैसे जड़ है पेड़ की वही पेड़ है, जड़ और पेड़ अलग-अलग नहीं है, गहरे में जड़ से लेकर और ऊपर पत्तों के अग्र भाग तक एक पेड़ ही है, ऐसे ही परमात्मा में ही ब्रह्म है यह अलग-अलग नहीं है जब तक ब्रह्म दिख रहा है, तब तक परमात्मा नजर नहीं आ रहा, जब आप ध्यान की अनंत गहराई में जाकर देखोगे, तब आपको सम्पूर्ण संसार में परमात्मा ही नजर आएंगे। जैसे सूत के धागे में धागे की गांठे ही मनियां होती है, जो उसी धागे के मनिये बने हैं वह धागे से अलग नहीं वह भी धागा ही है, ऐसे ही परमात्मा की लीला है जो सारा संसार नजर आ रहा है, वह परमात्मा से अलग नहीं, परमात्मा और जगत ऐसे ओत-प्रोत हैं, जैसे सूत के धागे में धागे की ही गांठें मनियां है धागे से अलग नहीं।
जैसे पानी ही बर्फ (आईस) है, बर्फ अलग नहीं है, जैसे बर्फ पिघलती है पानी बन जाती है और वही पानी फिर माईनस डिग्री में दोबारा बर्फ बन जाता है। जैसे सोने के बने गहने कड़ा, कन्ठी, चेन अलग-अलग रूप में दिखाई देते हैं, लेकिन जिससे बने है वह धातु सोना सबमें एक ही है।
ऐसे ही सम्पूर्ण प्रकृति में आपको पेड़, पौधे, नदियां, सागर, पहाड़ और सम्पूर्ण जीव प्राणियों के शरीर अलग-अलग नजर आते हैं, लेकिन इन सब के भीतर परमात्मा एक ही है।