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एतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय।
अहं कृत्स्नस्य जगतः प्रभवः प्रलयस्तथा।।
अर्थ अपरा और परा इन दोनों प्रकृतियों के मिलने से ही समस्त जीवों का जन्म हुआ है इसे तुम धारण करो | समस्त जगत की उत्पत्ति और प्रलय मैं ही हूँ। ऐसा तुम समझो व्याख्यागीता अध्याय 7 का श्लोक 6 जो आपकी आंख से दृश्य दिखाई पड़ता है यह सम्पूर्ण संसार प्रकृति है, जो आप अपने कानों से सुनते हैं और अपने हाथों से जिसको स्पर्श करते हैं वह सब प्रकृति है, और “जो आपके भीतर मन, बुद्धि और अहंकार के पार रह जाता है वह परम प्रभु है।“ भगवान कहते हैं प्रभव तथा प्रलय मैं हूँ। जितना खुल कर कृष्ण ने ज्ञान दिया, उतना खुल कर पृथ्वी पर ना पहले ना बाद में, किसी धर्म में किसी शास्त्र में नहीं दिया गया। किसी भी धर्म में ऐसा खुल कर नहीं बोला गया कि मृत्यु भी मैं हूँ, आज तक जितने भी धर्म हुए सबने भगवान के रूप की व्याख्या की वह सुन्दर रूप में ही की, हिन्दु धर्म में भी आज तक परमात्मा की तस्वीर बनाई तो बहुत सुन्दर मूर्तियां बनाई गई जितने भी भगवान की मूर्तियां राम, कृष्ण, इन्द्र, विष्णु सबकी बिना मूंछ- दाढ़ी और जवानी की ही तस्वीरें हैं। श्री कृष्ण कहते हैं जन्म भी मैं हूँ और मृत्यु भी मैं हूँ, दिन भी मैं हूँ, रात्री भी मैं हूँ, सुन्दर भी मैं हूँ, तो कुरूप भी मैं हूँ, अमृत भी मैं हूँ तो जहर भी मैं, सर्जन भी मैं हूँ तो विनाश भी मैं हूँ, सब मेरे से ही बनते हैं और मुझमें ही खो जाते हैं। मृत्यु तो विश्राम है जैसे रात्री विश्राम है ऐसे, भगवान कहते हैं प्रभव तथा प्रलय यानि उत्पत्ति और विनाश सम्पूर्ण जगत मैं ही हूँ
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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