मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये।
यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्त्वतरू।।
यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्त्वतरू।।
अर्थ हज़ारों मानवों में से कोई एक सिद्धि के लिए प्रयास करता है और उन सभी प्रयास करने के वाले (हज़ारों) सिद्धों में से किसी एक को मेरे तत्वरूप (समग्ररूप) का ज्ञान होता है व्याख्यागीता अध्याय 7 का श्लोक 3
हजारों मनुष्यों में एक व्यक्ति भक्ति मार्ग पर चलता है बाकी नौ सौ निन्यानवे तो इस संसार की माया से मोहित होकर जन्मते-मरते रहते हैं और उन यत्न करने वाले यानि भक्ति करने वाले एक हजार मुक्त पुरूषों में एक ही मुक्ति को प्राप्त होता है, अब इस बात को समझें पहले हजारों में एक भक्ति करने वाले को बताया फिर हजारों भक्तों में एक मुक्ति प्राप्त करने वाला बताया यानि दस लाख लोगों में एक हजार भक्ति मार्ग वाले भक्त होते हैं उन दस लाख लोगों में एक परमधाम को प्राप्त करता है।
जो परमधाम को प्राप्त करने के लिए यत्न करते हैं, पहले आपको उस मार्ग पर आना होगा, अगर आपको परमात्मा की खोज पर निकलना है तो सबसे पहले यह काम करें, जो आपके पास है उसको याद रखें, जो छूट गया उसको भूल जाएं, जो दांत अपने पास है उस को ही अच्छी तरह टटोल लें, जो गिर जाये उसे मत टटोलें, जो आज खाना मिला उसका आनंद लें, जो कल मिलेगा उसके सपने ना देखें, जो नहीं है उसको छोड़ दें, जो है इस क्षण में उसका आनंद लें, तो आप लाखों में एक बनना शुरू हो गये हो।