जरामरणमोक्षाय मामाश्रित्य यतन्ति ये।
ते ब्रह्म तद्विदुरू कृत्स्न मध्यात्मं कर्म चाखिलम्।।
साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदुः।
प्रयाणकालेऽपि च मां ते विदुर्युक्तचेतसः।।
ते ब्रह्म तद्विदुरू कृत्स्न मध्यात्मं कर्म चाखिलम्।।
साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदुः।
प्रयाणकालेऽपि च मां ते विदुर्युक्तचेतसः।।
अर्थ जो मनुष्य वृद्धावस्था और मृत्यु से मुक्ति पाने के लिए मेरे आश्रित हो प्रयत्नशील रहते है वे उस ब्रह्म और सम्पूर्ण आध्यात्म और कर्म को समझ जाते है। व्याख्यागीता अध्याय 7 का श्लोक 29-30
जो व्यक्ति बार-बार जन्म मृत्यु के चक्कर को रोकने का यत्न करते हैं और हमेशा के लिए मुक्ति का प्रयास करते हैं वह तत्वज्ञानी सम्पूर्ण ब्रह्म को, अध्यात्म को और जीवन में कर्म क्या होते हैं वह सब जानते हैं।
जिस ज्ञानी को अधिभूत, अधिदेव, अधियज्ञ के ज्ञान के साथ प्रभु जिसने यह सृष्टि बनाने वाले का सम्पूर्ण ज्ञान होता है, वह व्यक्ति जब देह का त्याग करता है उस वक्त फिर जन्म नहीं लेता वह ज्ञानी मृत्यु के बाद परम प्रभु में विलीन हो जाता है।
जिस दिन मनुष्य अपने को परमात्मा में छोड़ देता है उसी दिन वह परमात्मा को प्राप्त हो जाता है, प्रभु की शरणागति में जायेगा, उस दिन मैं और मेरा दोनों मिट जाएगा, उस दिन बूंद सागर में गिर कर खुद सागर बन जाएगी।
आईये जानते हैं कि अगले अध्याय में /ब्रह्म, अध्यात्म, कर्म व अधिभूत, अधिदेव, अधियज्ञ का ज्ञान-
‘‘ जय श्री कृष्णा ’’