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वेदाहं समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन।
भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन।।
अर्थ हे अर्जुन ! जो भी प्राणी भूत में हुए , वर्तमान में है और भविष्य में होंगे उन सभी प्राणियों को मैं तो जानता हूँ परन्तु मुझे कोई भी भक्त के सिवा मूढ़ मनुष्य नहीं जानता व्याख्यागीता अध्याय 7 का श्लोक 26 भगवान कह रहे हैं कि जो पहले बीत चुका है, अब चल रहा है और आगे जो होगा उन सब भूतों को मैं जानता हूँ यानि भगवान को पता है कि किस-किस की क्या-क्या इच्छा है और उनको इच्छा पूरी करने के लिए कितने जन्मों में और क्या करना है, इच्छाओं से ही जीवन व अगला जन्म होता है। भगवान आपके भीतर हैं आप दुनियां से और अपने खुद से भी इच्छा छिपा सकते हो लेकिन आपके भीतर प्रभु आत्मा रूप में विराजमान है, उससे कैसे छुपाओगे। भगवान को सबकी आसक्तियों व आगे के जन्मों का पता होता है। लेकिन इस माया में पड़े एक भी व्यक्ति को प्रभु का सच्चा ज्ञान नहीं।
  • अपने योग बल से संसार की इच्छाओं से ऊपर उठ चुका है, वह आगे होने वाले भविष्य की घटना को जान लेता है। भगवान ने पहले भी कहा था कि तू निश्चय करके खड़ा हो जा तू वैरियों को अवश्य जीतेगा, यानि भगवान सब जानते थे कि कौन जीतेगा यह युद्ध, इस लिये भगवान कहते हैं भविष्य में होंगे उन प्राणायों को भी मैं जानता हूँ। भगवान ने अध्याय ग्यारहवें में भी जब अर्जुन को विराट रूप दिखलाया तब भी अर्जुन को कहा और भी जो कुछ देखना है वह अभी देख ले मेरे विराट रूप में, ऐसा कहने पर अर्जुन के मन में आया कि देख लेता हूँ युद्ध को कौन जीतेगा, तब अर्जुन ने देखा विपक्षी सेना के सभी योद्धा भगवान के विराट मुख में जा रहे हैं। परमात्मा सब जानते है भूतकाल, वर्तमान और भविष्य को।
भगवान ने कहा था तू वैरीयों को अवश्य जीतेगा यह सच ही कहा था, कोई भी ज्ञानी आदमी धर्म और अधर्म को देखकर बता सकता है कि कौन जीतेगा, धर्म की बात तो यह थी की पांडवों के तेरह वर्ष का वनवास पूरा होने के बाद उनका आधा राज्य मिलना चाहिये था, लेकिन दुर्याेधन ने साफ इनकार कर दिया था कि युद्ध किये बिना में पांडवों को सुई के नोक जितनी जगह नहीं दूंगा, यह दुर्योधन का अधर्म था, जहाँ धर्म यानि जहाँ सत्य होता है वहाँ परमात्मा का साथ होता है, पांडव सत्य पर खड़े थे दुर्योधन अधर्म कर रहा था, इसलिये ज्ञानी लोगों को पहले ही पता चल गया था, कि परमात्मा सत्य का साथ देते हैं और पांडव धर्मी है तो जीत निश्चित ही पांडवों की होगी। कोई भी संसार माया से ऊपर उठ जाता है, वह अपने आत्मबल से, परमात्मा के साथ युक्त माना जाता है वह आने वाले भविष्य को भी बता सकता है। जैसे कोई एक व्यक्ति वृक्ष या कोई ऊंची बिल्डिंग पर खड़ा है और दूसरा व्यक्ति नीचे खड़ा है, ऊपर वाला व्यक्ति दूर से देखकर नीचे वाले व्यक्ति को पहले बता सकता है कि अभी एक गाडी आयेगी, नीचे वाले व्यक्ति को गली में गाड़ी दिखाई नहीं दे रही क्योंकि गली एल शेप में है और जो ऊपर खड़ा है उसको दिखाई दे रही है, नीचे खड़ा है उसको दिखाई बाद में देगी जब गाडी एल से स्ट्रेट में आयेगी पास में, क्योंकि वह नीचे खड़ा है। जो संसार की, माया से ऊपर उठ गया वह दूर का देख लेते हैं, उसको आने वाले भविष्य का भी पता होता है। भगवान कहते हैं मैं सब जानता हूँ। भूत, वर्तमान और भविष्य, वास्तव में तीनों काल रुके हुये हैं, परमात्मा अचल व्याप्त है, जैसे थियेटर का परदा अपनी जगह स्थिर है, नाटक ही चलता है ऐसे ही प्रिय सज्जनों परम अपनी जगह स्थिर है, यह तो मन की दौड़ ही चल रही है, मन की दौड़ से समय चलता हुआ नजर आ रहा है, जैसे बस गाड़ी में बैठे हुए यात्री को बराबर के पेड़ चलते हुए नजर आते हैं बहुत स्पीड़ से पेड़ पीछे भूतकाल की तरफ दौड़ते नजर आते हैं, लेकिन हकीकत यह है पेड़ नहीं दौड़ते वह अपनी जगह स्थिर है, वह तो गाड़ी दौड़ने से पेड़ दौड़ते नजर आते हैं, ऐसे ही मनुष्य का मन दौड़ रहा है, समय रूका हुआ, समय आकाल मूर्त है, मन ही दौड़ रहा है, ठहर कर चिन्तन करो यह पृथ्वी, चांद, सूर्य, आकाश वही है जब राम आये यह वही धरती है जब इस धरती के लिये कुरुक्षेत्र में खून की नदियां बह गई व हारने वाले और जीतने वाले सब राजा मर गये यह संसार वही है, आपके दादा थे तब भी यह आकाश यहीं था आपके पिता जी के वक्त भी यह आकाश यहीं था वह सब चले गये दौड़-दौड़ कर, ऐसे ही अब जो मनुष्य नजर आ रहे हैं, यहाँ यह भी सौ साल बाद एक भी नजर नहीं आएगा फिर भी यह आकाश यहीं रहेगा। इसलिये भगवान कहते हैं मैं सब जानता हूँ कि सागर वही है अपनी जगह स्थित ये तो बस सागर में लहरें चल रही है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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