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अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धयरू।
परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम्।।

नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः।
मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम्।।
अर्थ अल्पबुद्धियुक्त मनुष्य मन-इन्द्रियों से परे इस परमभाव को 'मैं केवल शरीर धारी ही हूँ' ऐसा समझते है ऐसे दुर्बुद्धि मनुष्यों का समुदाय मुझ अविनाशी परमात्मा को नहीं जानते ऐसे मनुष्यों के सामने मैं अपनी योगमाया में छिपा हुआ प्रकट नहीं होता व्याख्यागीता अध्याय 7 का श्लोक 24-25 जब प्रभु शरीर धारण करते हैं तो किसी मनुष्य के रूप को ही अपना रूप मानकर इस संसार में लोगों का उद्धार करते हैं जब ज्ञानी के रूप को प्रभु अपना रूप बना कर संसार में कार्य करते हैं, तब ज्ञानी को पता होता है कि, यह कर्म ‘मैं’ नहीं कर रहा हूँ, यह सब तो परम प्रभु ने मेरे रूप को धारण करके यह लीला रच रखी है, ज्ञानी अपने भावों में ईश्वर को मन इन्द्रियों से परे मानते हैं। भगवान कह रहे हैं, नहीं होता हूँ प्रकट सबके सामने, भगवान प्रकृति माया जो तीन गुण वाली है, इस माया से अच्छी प्रकार ढके हुए हैं, यानि अदृश्य रहते हैं, कण-कण में होते हुए भी दिखाई नहीं देते। जो मूढी व्यक्ति है जिसपे गुण की मार सबसे ज्यादा रहती है, वह व्यक्ति भगवान को जन्म लेने वाला और खत्म होने वाला समझते हैं। उनको पता नहीं कि वह जिसने जन्म लेकर तत्व से जान लिया और प्रभु से प्रेम हो गया, भगवान तो उस व्यक्ति में ही आत्मसाक्षात होकर अपना रूप उस शरीर को मानकर लीला करते हैं। मूढ़ी मनुष्यों को प्रभु समझ ही नहीं आते मूढ़ मनुष्य तो समझते हैं, कि कृष्ण जी ने आज से पाँच हजार वर्ष पहले जन्म लिया, और 108 वर्ष जीवन जी कर मृत्यु हो गई। बस यही गलती होती है भगवान कह रहे हैं कि मूढ मनुष्य समुदाय मुझको जन्मने मरने वाला जानते हैं, और ज्ञानी को पता है कि ना भगवान कृष्ण ने जन्म लिया और ना ही मृत्यु हुई, वह तो प्रभु ने कुछ पापियों का अंत करने के लिए रूप रचा था। प्रभु हमेशा थे आज भी है और आगे भी रहेंगे। भगवान हमारे चारों और कण-कण में है, जब जरूरत होती है वह किसी आत्मज्ञानी को अपना रूप मानकर लीला करते रहते हैं। श्री कृष्ण वही कह रहे हैं ज्ञान का अर्थ है, आकार से निराकार की यात्रा करना, जो बुद्धिहीन है वह आकार में अटक जाते हैं, जो बुद्धिमान है वह निराकार में डुबकी लगाते हैं, बस आपको एक बार निराकार की झलक मिल जाये तो इस जगत का सब आकार मिट जाएगा फिर तो बस निराकार ही बचता है, वह जो निराकार को देख ले वह बुद्धिमान है और जो आकार में उलझा रहे वह बुद्धिहीन है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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