अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम्।
देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्ता यान्ति मामपि।।
देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्ता यान्ति मामपि।।
अर्थ परन्तु उन अल्पबुद्धि से युक्त मनुष्यों को देवताओं की पूजा का नाशवान फल ही प्राप्त होता है देवताओं की पूजा करने वाले देवताओं को और मेरी भक्ति करने वाले मुझे ही प्राप्त होते है व्याख्यागीता अध्याय 7 का श्लोक 23
प्रकृति माया में आसक्ति रखने वाले तीनों प्रकार के मनुष्य का फल नाशवान है क्योंकि प्रकृति की कोई चीज स्थाई नहीं है। हर पल यहाँ दृश्य संसार बदल रहा है। धन, शरीर, सुख कुछ भी स्थाई नहीं है। अगर कोई वस्तु स्थाई है भी लम्बे समय के लिए तो अंत में वह भी नाशवान है, क्योंकि शरीर के खत्म होते ही यहाँ का धन सुख बन्धु सब छूट जाते हैं, इसलिए संसार का कोई भी फल स्थाई नहीं है। सब नाशवान है, फिर भी सात्विक भाव के मनुष्य जो देवताओं को पूजते हैं वह शरीर का त्याग होने पर देवताओं को प्राप्त होते हैं यानि उनके पुण्य के हिसाब से वह कुछ वक्त के लिए उत्तम लोक में देवताओं वाला सुख भोग कर वापिस इस मृत्यु लोक में आते हैं, और भगवान कह रहे हैं कि इन तीनों गुणों का उल्लंघन करके, ज्ञानी मेरा भक्त मुझमें एकीभाव को प्राप्त हुआ जब देह त्याग करता है तब मुझको ही प्राप्त होता है।
देह त्याग के बाद संसार के सब फल नाशवान होते हैं यहाँ मृत्यु सूत्र को अच्छे से समझें।
मृत्यु से ज्यादा बुद्धिमान कोई नहीं, हर आदमी की नासमझी का मृत्यु को जितना पता है, उतना किसी और को नहीं होगा, क्योंकि जीवन भर दौड़ कर जो कुछ भी हम इकट्ठा करते हैं, मृत्यु उसको एक क्षण में बिखेर जाती है, एक बार नहीं करोड़ों बार मृत्यु ने बिखेरा है, आदमी फिर इकट्ठा करता है, मृत्यु फिर बिखेर देती है, आदमी की नासमझी का मृत्यु को जितना पता है उतना किसी और को नहीं। कृष्ण यही कह रहे हैं कि हम कागज की नाव पर जीवन भर यात्रा करते हैं और हमारी नाव स्वप्नों से ज्यादा नहीं और हमारे घर ताश के पत्तों के घर हैं, रेत पर हमारे नाम हैं, हवा आएगी सब बुझ जायेगा, सब मिट जाएगा।
ज्ञानी मन्दिर में कुछ मांगने की प्रार्थना करने के लिए नहीं जाता, वह तो इस बात का धन्यवाद देने जाता है कि जो तुमने दिया है, वह मेरे सामर्थ्य से कहीं ज्यादा है।
प्रार्थना तो वही सत्य है जो वहाँ पहुंचा दे, जिसे मिलने पर दोबारा खोना ना पड़े, ऐसे ज्ञानी देवता की पूजा का खेल नहीं करते, वह तो परमसत्ता में खुद को समर्पित कर देते हैं वह देह त्याग के बाद परमधाम को प्राप्त होते हैं।