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स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते।
लभते च ततः कामान्मयैव विहितान् हि तान्।।
अर्थ श्रद्धा से युक्त होकर वह उस देवता की आराधना करता है और उसकी वह इच्छा (कामना) पूरी भी होती है परन्तु उन सभी कामनापूर्ति का विधान मेरे द्वारा ही होता है व्याख्यागीता अध्याय 7 का श्लोक 22 जितने भी लोग पूजा पाठ करते हैं देवताओं की, उसकी जो कामना पूरी होती है, वह कामना परम प्रभु ही पूरी करते हैं, लेकिन माया में मोहित मनुष्य को पता नहीं चलता कि यह कामना कैसे पूरी होती है। भाव मानव के जिसके प्रति होते हैं प्रभु भक्त को फल दे देता है उसके प्रति श्रद्धा और मजबूत बना देते हैं श्रद्धा इसलिए मजबूत कर देते हैं कि शायद एक दिन इसके भीतर ज्ञान की गंगा बरस जाये। क्योंकि ज्ञान हमारा स्वभाव है, वासना को पकड़ कर मनुष्य ने उसे खोया है श्रद्धा से शायद वासना हट जाये, ज्ञान हमारे भीतर फिर मिल जायेगा।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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