बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः।।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः।।
अर्थ अनेक जन्मो के अन्त में (इस जन्म में) ज्ञान को उपलब्ध हो जाता है की 'यह सबकुछ भगवत्स्वरूप है ' इस तरह, मेरी शरण में आता है ऐसा महात्मा अति दुर्लभ है व्याख्यागीता अध्याय 7 का श्लोक 19
बहुत जन्मों के अंत में आप इस बात को समझें वह अंत का जन्म है यह जो अब जी रहे हैं यह है इस जन्म के बाद जब अगला जन्म होगा तब उस वक्त व जन्म अंत का जन्म होता है, लेकिन ज्ञानी तो इस जन्म को ही अन्तिम जन्म समझ कर मुक्ति के लिए प्रभु की शरण में चले जाते हैं, सब दिशाओं में वासुदेव ही व्याप्त है, आप यहाँ समझे यह जो दसों दिशाओं में सत चित आनंद प्रभु व्याप्त है, उसको सन्तों ने अलग-अलग नाम से व्याख्या की है जैसे वासुदेव, सच्चिदानन्दघन, परम गति, ओम, एक ओमकार, अल्ला, गोड, भगवान, ईश्वर, प्रभु, परम केव्लय, परम आत्मा। भगवान कह रहे हैं कि ज्ञानी को पता होता है कि सब कुछ वासुदेव ही है ऐसे तत्व से जानने वाले ज्ञानी मिलने बड़े मुश्किल होते हैं, जो ज्ञानी संसार को स्वप्न समझकर प्रभु को हर तत्व में देखते हैं और जिसने अपना सम्पूर्ण जीवन प्रभु के चरणों में अर्पित कर दिया ऐसे ज्ञानी महात्मा मिलने बड़े दुर्लभ हो जाते हैं।