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चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ।।
अर्थ हे भरतवंशी अर्जुन ! आर्त, जिज्ञासु, अर्थार्थी और ज्ञानी ये चार प्रकार के मनुष्य शुभकर्म करते हुए मेरी शरण में आते है व्याख्यागीता अध्याय 7 का श्लोक 16 चार प्रकार के स्वभाव के मनुष्य पूरी पृथ्वी पर है (आर्त) का मतलब आप अच्छे से समझो तो यह वह लोग है जिनपे प्रकृति का तमोगुण चढ़ा रहता है, यानि आल्सय, निंद्रा, दुखी रहने वाले मनुष्य आर्त होते है। आर्त स्वभाव के मनुष्य दुख निवारण के लिए भगवान को अलग-अलग रूप में पूजा करके भजते रहते हैं और दूसरे प्रकार के मनुष्य हैं (जिज्ञासु) यह मनुष्य इच्छा रखने वाले होते हैं, जिज्ञासु मानव पर प्रकृति के रजोगुण के स्वभाव का असर रहता है, जिज्ञासु सांसारिक पदार्थों को प्राप्त करने के लिए प्रभु को भजते हैं। तीसरे हैं अर्थार्थी भगवान को भजने वाले पंडित स्वभाव के मनुष्य जो पाप से बच कर सुख से जीवन व्यतीत करते हैं और भगवान की पूजा पाठ आरती करके प्रभु को भजते हैं यह सुख और ज्ञान चाहते हैं अर्थाथी स्वभाव के लोगों पर सत्वगुण प्रकृति के भाव होते है। और चौथे प्रकार के व्यक्ति होते है ज्ञानी। ज्ञानी पर प्रकृति माया का असर नहीं रहता वह तीनों गुणों का उल्लंघन करके आत्मा में ही खुश रहता है क्योंकि ज्ञान$विज्ञान को जानने वाला ही तत्वज्ञानी होता है, ज्ञानी आत्मा में रहता हुआ, प्रकृति की माया में छिपे हुए प्रभु को हर पदार्थ (तत्व) में जान लेता है, वह तत्वज्ञानी आत्मा में स्थिर रहता है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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