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त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभिः सर्वमिदं जगत्।
मोहितं नाभिजानाति मामेभ्यः परमव्ययम्।।
अर्थ इन तीनो गुणों की माया से मोहित समस्त जगत इन गुणों से सर्वथारहित 'मुझ परम को नहीं जानता व्याख्यागीता अध्याय 7 का श्लोक 13 सत्व, रज, तम इन तीनों गुणों के भावों से मोहित सब प्राणी माया के जाल में फसे है, इस पृथ्वी पर सभी मनुष्य गुणों से ही मोहित हो रहे हैं, इस अपरा प्रकृति के अहंकार में कोई अपना बिजनेस सेट कर रहा है, कोई नौकरी के पीछे दौड़ रहा है, कोई नेता बनने की दौड़ में है, किसी को धन चाहिये, किसी को घर चाहिये लेकिन आज तक यहाँ अपना परमानेंट घर कोई बसा नहीं सका, फिर भी गुणों से मोहित होकर हर प्राणी पूरे जीवन दौड़ता है और अंत में सब कमाया यहीं छोड़ कर मर जाता है। फिर उसी इच्छा से दोबारा जन्म लेकर पूरे जीवन दोड़ता है, इस माया से मोहित प्राणी पूरे जीवन में कभी यह नहीं सोचता कि मैं जन्म से पहले कहाँ था और मृत्यु के बाद कहाँ जाऊंगा, यहाँ मनुष्य कहाँ से आ रहे हैं और मरने के बाद कहाँ जा रहे हैं, यह संसार क्या है और इसको किसने और क्यों बनाया है, ऐसा सोचने वाले लाखों में एक आध प्राणी होते हैं, बाकी सभी प्राणी इस माया से मोहित होकर एक-दूजे को हराने की दौड़ में दौड़ रहे हैं। भगवान कहते हैं इन गुणों से अतीत प्राणी समुदाय मुझ अविनाशी को नहीं जानते यानि सुख, इच्छा, दुख इन तीनो गुणों की माया में पड़ा मानव अपने भीतर जो अविनाशी आत्मा है उसको नहीं जानते। भगवान कहते हैं अर्जुन को कि तीनों गुणों तक प्रकृति है तुम ऐसा जानो और तीनों गुणों के पार तू मुझे देखे तो जान पाएगा तू मुझको।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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