बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम्।
बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम्।।
बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम्।।
अर्थ हे पार्थ ! मुझे समस्त जीवों का अविनाशी बीज समझ, मैं ही बुद्धीमानो में निहित बुद्धि और तेजस्वियों में निहित तेज हूँ। व्याख्यागीता अध्याय 7 का श्लोक 10
सनातन बीज मुझे जान: सनातन का अर्थ होता है अनादि जो हमेशा था और हमेशा रहेगा, भगवान कहते हैं मेरे बिना कुछ भी नहीं हो सकता यानि यह सब मुझसे निकला है और मुझमें ही लीन हो जाएगा, कृष्ण ने कहा था कि उत्पत्ति प्रलय दोनों मैं हूँ, यह जो ब्रह्म दिखाई दे रहा है यह मेरे हटाते ही सब शून्य हो जाएगा, वह शून्य ही सनातन है जो हमेशा रहता है वह मैं हूँ।
बुद्धिमानों की बुद्धि: यहाँ बुद्धि का मतलब चालाकी नहीं, यहाँ बुद्धि का मतलब दो और दो चार जोड़ दे वह नहीं, यहाँ बुद्धि वाह-वाही होशियारी नहीं, यहाँ बुद्धि का मतलब अपने भीतर के आकाश में खड़े हो जाना, जो बिल्कुल खाली है, बिल्कुल शून्य है उस शून्य में खड़े हो जाना बुद्धिमानों की बुद्धि है, क्योंकि शून्य में खड़े होकर ही सत्य को जाना जा सकता है, सैकड़ों इच्छाओं से भरी बुद्धि से सत्य को नहीं जाना जा सकता, जैसे आप अपने कमरे में सामान और फर्नीचर भर देते हो तो कमरा छोटा हो जाता है ऐसे ही आप बुद्धि में कचरा भर लेते हो बुद्धि उतनी ही छोटी हो जाती है, बुद्धि तो रूम है, खाली स्पेस (जगह) है, शून्य है और जो शून्य में खड़ा है, वह बुद्धिमान है।
तेजस्वियों का तेज: तेज चेहरे की चमक को नहीं कहते, आप जो अच्छे काम करते हो आपको देखकर वैसे ही लोग अच्छे काम करने लग जाएं फिर उनको देखकर आगे हजारों लोग करने लग जाएं वह तेज होता है
जैसे आप हर रोज गीता पढ़ते हो और आपको देखकर और भी सैकड़ों लोग गीता पढ़ने लग जाए तो वह आपका तेज है, जैसे अब से पाँच हजार वर्ष पूर्व श्री कृष्ण आए उन्होने श्री गीता ज्ञान दिया, तब लोगों को इतना समझ नहीं आया जितना उसके बाद वक्त के साथ-साथ लोगों में श्री कृष्ण का तेज (ख्याती) बढ़ता ही गया और श्री कृष्ण के जाने के बाद जितना समय बीतता जा रहा है, उतना ही श्री कृष्ण के नाम का तेज बढ़ते ही जा रहा है आज पूरी दुनियां में जितना श्री कृष्ण को पढ़ा और माना जाता है, उतना शायद कोई और नहीं, यही होता है तेजस्वियों का तेज, भगवान कहते हैं यह मैं हूँ।