जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः।
शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः।।
शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः।।
अर्थ जो अपने आप को जीत चुका है। उसके लिए सर्दी - गर्मी , सुख-दुःख, मान-अपमान में समान भाव होता है।ऐसा मनुष्य परमात्मा को नित्य प्राप्त है | व्याख्यागीता अध्याय 6 का श्लोक 7
सने अपने आप पर विजय कर ली अर्थात जिसके मन में मैं पन व मेरापन नहीं है वह सुख-दुःख, मान सम्मान, होने पर भी सम, निर्विकार रहता है। जैसे शीत ऊष्ण में अर्थात सर्दी जैसे गर्मी में, ऐसा मनुष्य सिद्ध कर्मयोगी है उसको परम का आत्म बोध हो चुका है। कारण कि सुख-दुःख मान अपमान तो सर्दी गर्मी की तरह आते जाते हैं पर परमात्मा तत्व ज्यों का त्यों रहता है। यानि उस योगी के ज्ञान में परमात्मा के सिवा कुछ और है ही नहीं।