Logo
उद्धरेदात्मनाऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्। 
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।।
  
बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः। 
अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत्।।
अर्थ अपने आपके द्वारा अपना उत्थान करो ,अपना पतन न करो मानव खुद ही अपना मित्र भी है और खुद ही अपना शत्रु भी । जिस मनुष्य ने खुद पर विजय प्राप्त कर ली है, वह आत्मा का (स्वयं का )मित्र होता है। और जो अपने आप को नहीं जीतता है, वह अपने आप के साथ शत्रु के रूप में ही व्यवहार करता है। व्याख्यागीता अध्याय 6 का श्लोक 5-6 अपने द्वारा अपना खुद का इस संसार समुन्द्र से उद्धार करें। मनुष्य का उद्धार कोई दूसरा व्यक्ति नहीं कर सकता, जब तक वो अपना उद्धार करने के लिए योग पथ पर ना चले। किसी भी मनुष्य को कोई शास्त्र, गुरू या बड़ी से बड़ी यूनिवर्सिटी तब तक नहीं सिखा सकती, जब तक वह खुद सीखाना ना चाहे, दूसरा आपका कोई तब तक उद्धार नहीं कर सकता, जब तक तुम अपना उद्धार करने की ना सोचो। तभी भगवान कह रहे हैं अर्जुन को कि अपने खुद के द्वारा अपना खुद का उद्धार करें। क्योंकि यह मनुष्य खुद ही अपना मित्र है और मनुष्य खुद ही अपना शत्रु है। आप सोच के देखें भगवान की लीला को कि मनुष्य को किसी दूसरे व्यक्ति या शत्रु की जरूरत नहीं वह खुद ही अपना शत्रु है अर्थात जैसे मनुष्य किसी दूसरे से अपने विचारों में शत्रुता रखता है या द्वेष भाव में किसी से जलन करके किसी का बुरा सोचता है। अब आप प्रकृति का एक गणित समझें कि मनुष्य अपने भावों में जिस चीज का चिन्तन ज्यादा करता है मनुष्य का जीवन भी वैसा ही हो जाता है। आज के विचार ही आपके आने वाले कल यानि भविष्य का निर्माण करते हैं आज जैसा आप सोचोगे वैसा कल आपका जीवन होगा, जैसा जीवन रहा वैसा अगला जन्म होगा। सब व्यक्तियों की अलग-अलग सोच है सब का अलग-अलग जीवन है गणित कहाँ खराब होता है मनुष्य का जहां मनुष्य किसी दूसरे का बुरा सोचता है। लेकिन प्रकृति को पता है कि यह जो सोच रहा है उसको ही इसके जीवन में दे दो। अब प्रकृति के गणित में प्रकृति सबको जो सोचते हैं वही देती है उसको कोई मतलब नहीं कि यह आप किसी और के लिए सोच रहे हो या अपने लिए। आपका किसी के बारे में अच्छा या बुरा सोचना किसी दूसरे की जिन्दगी में फर्क नहीं डाल सकता। जिसके लिए मनुष्य बुरा सोचता है उसका बुरा या भला आपके सोचने से नहीं होगा। उसका बुरा या भला उसके खुद के सोचने से होगा। हाँ यहाँ आपके बुरे सोचने से उसकी जिन्दगी में एक प्रतिशत भी फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन आप यहाँ किसी का बुरा सोच रहे हो तो प्रकृति का गणित (तंरगे) यह पकड़ लेता है कि जो आप सोच रहे है वैसा ही आपके जीवन में आपको मिले। सब विचारों का खेल है। कोई व्यक्ति सारी जिन्दगी कुत्तों के साथ रहा और मरते समय उन कुत्तों को सोचते हुए मरता है तो उसको अगला जन्म कुत्ता जुणी में ही मिलेगा। इसलिए भगवान कह रहे हैं कि अपना उद्धार खुद करें और अपने को अद्योगति में ना डालें अर्थात अद्योगति का मतलब होता है कि ना मनुष्य बना मरने के बाद ना मोक्ष प्राप्त हुआ। अद्योगति का मतलब कुत्ता, गधा, सूअर, बनना होता है। अब आप देखें मनुष्य खुद ही अपना मित्र है कारण कि अगर मनुष्य किसी का भला सोचता है तो वह जाने अनजाने में खुद का ही भला कर रहा है। इसलिए किसी और का अच्छा सोच कर उसने अपना खुद का ही भला कर लिया। इसलिए वह खुद अपना मित्र हुआ। किसी और को बुरा सोच-सोच कर वह अपना खुद का बुरा कर लेता है। इसलिए मनुष्य खुद ही अपना शत्रु है। जिसने अपने आपसे अपने आप को जीत लिया उसके लिए वह खुद ही अपना बंधु है अर्थात अपने आप का भाव है कि जिसने अपनी आत्मा के बल से अपने शरीर इन्द्रियों व मन को जीत लिया वह अपने आप का खुद बंधु है। जिसने अपने आप के ‘मन’ को नहीं जीता वह खुद अपना शत्रु हुआ। उसके लिए वह खुद ही अपने में शत्रुता बर्तता है।
logo

अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

Follow us on

अधिक जानकारी या निस्वार्थ योगदान के लिए आज ही संपर्क करे।

[email protected] [email protected]