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योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना। 
श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः।।
अर्थ मेरे मतानुसार, सम्पूर्ण योगियों में वह योगी सर्वश्रेष्ठ है जो श्रद्धावान होते हुए अपने मन को मुझमें लीन कर लेता है और अपनी आत्मा के माध्यम से मुझे पूजता है व्याख्यागीता अध्याय 6 का श्लोक 47 सम्पूर्ण योगियों में चाहे वह सांख्ययोगी हो चाहे कर्मयोगी हो सब योगी है सब अपने कल्याण के लिए भगवद मार्ग पर चल रहे हैं। उन सबमें जो योगी आत्म बोध करके श्रद्धा से अपनी अंतरात्मा में परमात्मा को निरन्तर समसाधना में भजता (ध्यान करता) है। भगवान श्री कृष्ण कह रहे हैं कि मेरे मत में वह सर्वश्रेष्ठ योगी है। ‘‘ जय श्री कृष्णा ’’
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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