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प्राप्य पुण्यकृतां लोकानुषित्वा शाश्वतीः समाः। 
शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते।।

अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम्। 
एतद्धि दुर्लभतरं लोके जन्म यदीदृशम्।।

तत्र तं बुद्धिसंयोगं लभते पौर्वदेहिकम्। 
यतते च ततो भूयः संसिद्धौ कुरुनन्दन।।

पूर्वाभ्यासेन तेनैव ह्रियते ह्यवशोऽपि सः। 
जिज्ञासुरपि योगस्य शब्दब्रह्मातिवर्तते।। 
अर्थ योग में असफल हुए योगी, पुण्यकर्म करने वाला उत्तम लोकों को प्राप्त होता है, और वहां बहुत समय तक रहने के बाद फिर यहां शुद्ध कुलीन लोगों के घर में जन्म लेता है। अथवा वैराग्यवान पुरुष उन लोकों में नहीं जाता है, बल्कि ज्ञानी योगियों के ही कुल में जन्म लेता है। परंतु इस प्रकार का जन्म, संसार में निःसंदेह ही बहुत ही दुर्लभ होता है। हे कुरूनंदन! वहां पर उसको पहले मनुष्य जन्म की साधन सम्पत्ति अनायास ही प्राप्त हो जाती है। फिर उससे वह कल्याण की सिद्धि के लिए विशेषता से पुनः प्रयास करता है। और वह शुध्द कुलीन घर में जनम लेने वाला भोगों में परवश होते हुए भी, उस पहले मनुष्य जन्म में किए हुए अभ्यास और साधना के कारण ही परमात्मा की ओर खिंचा जाता है। व्याख्यागीता अध्याय 6 का श्लोक 41-44 पहला योग भ्रष्ट जो परमात्मा में श्रद्धा रखने वाला लेकिन संयमी नहीं है अर्थात इसको ईश्वर का विश्वास तो है लेकिन योग में स्थिर नहीं है, स्थिर ना रहने के कारण यह पुरूष मुक्ति को प्राप्त नहीं होगा। परन्तु यह पुरूष परमात्मा में श्रद्धा रखता है और पाप का आचरण छोड़ चुका था। इसलिए यह देह त्याग के बाद अच्छे कर्मों के कारण पहले तो उत्तम लोक यानि स्वर्ग आदि लोकों में जायेगा। यानि उसने जितने पुण्य कर्म किये हैं उनका देवताओं जैसा फल उत्तम लोक में भोगेगा फिर पुण्य कर्मों का फल भोगने के बाद फिर ऐसे घर में जन्म लेगा जहाँ शुद्ध आचरण वाले श्रीमान हो। आपने यह बहुत जगह देखा होगा कि कई बच्चे दो साल की उम्र में ही विवेकशीलता में बड़े-बड़े वैज्ञानिकों को पीछे छोड़ देते हैं। कुछ बच्चे पांच वर्ष में ही इतने झगड़ालु होते हैं कि उनको देखकर आप पीछे के जन्मों का अंदाजा लगा सकते हैं। कुछ बच्चे अच्छे अमीर घर में भी जन्म लेते हैं, तो कुछ गरीब घर में जन्म लेते हैं। कुछ ज्ञानियों के घर में तो कुछ अज्ञानियों के घर में जन्मते हैं। जो बच्चा जैसे घर में जन्म लेता है वह उसके पिछले जन्मों के पाप पुण्य के हिसाब से अगला जन्म मिलता है। यह अंधविश्वास नहीं यह ज्ञानविज्ञान =तत्वज्ञान है। ऐसे ही जो परमात्मा में श्रद्धा रखते हैं और पाप के मार्ग को छोड़ चुके हैं। वह मृत्यु के बाद उत्तम लोक का सुख भोग कर, ऐसे श्रीमानों के घर में जन्म लेते हैं। जहाँ उनको बचपन से ही सुख व ज्ञान मिलना शुरू हो जाता है। जो उसने पिछले जन्म में परम प्रभु में श्रद्धा रखी थी और पाप का आचरण छोड़ दिया था। फिर बचपन से ही इस जन्म में परमात्मा की ओर इसका आकर्षित होता है। योग में स्थिर होकर समबुद्धि से यह पुरूष, वेदों में कहे हुए सारे ज्ञान को उल्लंघन कर जाता है। अर्थात मोक्ष को प्राप्त हो जाता है। दूसरा वैराग्यवान पुरूष जो परमात्मा के योग से स्थिर था, लेकिन अन्त समय में कुछ विचलित हो गया था। यह उत्तम लोकों में ना जाकर ज्ञानवान योगियों के कुल में ही जन्म लेगा। कारण कि योग भ्रष्ट को परमात्मा में श्रद्धा थी लेकिन योग को धारण नहीं कर रखा था। इसलिए वह पहले उत्तम लोक में गया फिर श्रीमानों के घर जन्म लिया। लेकिन जो वैराग्य वान पुरूष यानि योग के पथ पर चलने वाला जिसने समता योग को धारण कर रखा है लेकिन अन्त समय में विचलित हो गया जैसे अचानक एक क्षण में मृत्यु हो गई इसलिए वह योग में स्थिर नहीं हो सका तब वह अगला जन्म सीधा योगियों के कुल में लेता है। प्रश्न****- यह सीधा ही योगियों के घर जन्म लेता है लेकिन जो योग में स्थित ही नहीं होता उसको              पहले स्वर्ग मिला और फिर श्रीमानों के कुल में जन्म लेता है अच्छे से बताएं ? उत्तर****- जो योग में युक्त हैं। जो योग में सम्पूर्ण युक्त नहीं है। जो योगभ्रष्ट है। उसको मृत्यु के बाद लम्बा समय उत्तम लोक में लगा फिर जन्म हुआ फिर मुक्ति की तरफ चला इसको मुक्ति प्राप्त करने में समय ज्यादा लगा लेकिन जो योग में युक्त है वह तो सीधा ही योगियों के कुल में जन्मा है। उसको तो जन्म से योग दोबारा प्राप्त हो गया जिससे फिर वह तत्काल ही परमात्मा को प्राप्त हो जाता है। लेकिन इस प्रकार का जन्म जो योगियों के कुल में मिलता है, यह मिलना संसार में बहुत कठिन होता है। लेकिन जो योगी होते हैं उनको मिलना ही आसान है। योगी को योगियों के घर में जन्म मिलने से वह समबुद्धि योग के संस्कारों को जो पिछले जन्म में थे उनको तत्काल ही प्राप्त कर लेता है। योग को प्राप्त करके फिर दोबारा परमात्मा प्राप्ति के लिए प्रयत्न करता है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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