Logo
श्री भगवानुवाच 
असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलं। 
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते।।

असंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मतिः। 
वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायतः।।
अर्थ श्री भगवान ने कहा, "हे महाबाहो अर्जुन! मन निश्चय ही अतिशय चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है। परंतु अभ्यास और वैराग्य से यह वश में किया जा सकता है। अतः मेरा मत है कि जिस योग को असंयत आत्मा के लिए दुष्प्राप्य माना गया है, वह योग निश्चय ही प्राप्त होता है, परंतु वश्य आत्मा के द्वारा प्रयत्नपूर्वक अभ्यास से निश्चय ही योग की प्राप्ति होती है।" व्याख्यागीता अध्याय 6 का श्लोक 35-36 अर्जुन ने पहले चंचलता के कारण मन का निग्रह करना बड़ा कठिन बताया। उसी बात पर श्री कृष्ण कहते हैं कि तुम जो कह रहे हो, यह बात एक दम ठीक है। मन बहुत चंचल है। परन्तु मन को संसार से हटाकर परमात्मा में लगाओ, मन को बार-बार सम साधना ध्यान योग में लगाने का नाम अभ्यास है। जब साधक ध्यान करने के लिए बैठे, तब सब से पहले बिल्कुल रिलैक्स हो जाये। चार बार सांसो को बाहर फेंक कर ऐसी भावना करे कि मैंने मन से संसार को निकाल दिया। अब मेरा मन संसार की इच्छा नहीं करेगा। शांत, रिलैक्स, सम होकर अपने आसपास के सन्नाटे को सुने, जब सन्नाटा सुनोंगे तब कानों में ओमकार का नाद बजने की आवाज सुनेगी। वही ओंकार की ध्वनि है। बार-बार अभ्यास से स्थिरता आती है। संसार हर क्षण बदल रहा है। आत्मा कभी भी तथा किसी भी क्षण बदलता नहीं (अपना खुद का स्वरूप आत्मा है संसार नहीं)। जितने भी दोष, पाप, दुख पैदा होते हैं। वह सभी संसार के विषयों में राग रखने से होते है और जितना भी सुख, शांति, समता, धैर्य, सन्तोष मिलता है। यह सब संसार की इच्छा का त्याग करने से मिलता है ऐसा विचार करने से ही वैराग्य हो जाता है। जिसका मन वश में नहीं है उसके द्वारा योग प्राप्त करना बहुत कठिन है। परन्तु बार-बार योग का अभ्यास करने वाले तथा अपने वश में किये मन वाले साधक को समयोग प्राप्त होना सहज है ऐसा मेरा मत है भगवान के द्वारा अर्जुन को यह ज्ञान देने के बाद इस पर अर्जुन आगे तीन श्लोकों में प्रश्न करते है।
logo

अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

Follow us on

अधिक जानकारी या निस्वार्थ योगदान के लिए आज ही संपर्क करे।

[email protected] [email protected]