आरुरुक्षोर्मुनेर्योगं कर्म कारणमुच्यते।
योगारूढस्य तस्यैव शमः कारणमुच्यते।।
योगारूढस्य तस्यैव शमः कारणमुच्यते।।
अर्थ जो योग में पुरणत्या की चाहत रखते हैं ऐसे मननशील योगी के लिए आसक्ति रहित कर्त्तव्य कर्म करना साधन होता है और उस योगरूढ़ मनुष्य के लिए सम शान्ति को परमात्मा प्राप्ति में कारण कहा गया है।
व्याख्यागीता अध्याय 6 का श्लोक 3
योग में आरूढ होने की इच्छा वाले अर्थात चाहे ज्ञानयोग हो चाहे कर्मयोग हो। योग दोनों में युक्त करना पड़ता है। जिसको योग मार्ग पर चलने की इच्छा हो रही है उनको पहले योग क्या है समझ लेना चाहिए।
योग अर्थात भूतकाल व भविष्यकाल को भूलकर वर्तमान के बीतते हुए पलों में हर पल को स्थिर, शांत होकर महसूस करना, जीवन सागर की वह लहर है जो तरंग से शुरू होकर लहर रूप में बढ़ती व चलती ही जाती है। लहर एक बार शुरू हुई तो किनारे से टकराकर ही खत्म होती है। ऐसे ही जीवन है पहली सांस से शुरू होकर बढ़ता व चलता ही जाता है, मौत के किनारे पर जाकर खत्म हो जाता है। वर्तमान रूकता कहाँ है लहर की तरह चलता ही रहता है जब तक देखते हो उतने में तो वह समय निकल जाता है। आपने एक अक्षर पढ़ा इतने में वह पल निकल चुका।
हम पूरे जीवन में संसार को एक बार भी नहीं देख पाते देखने मात्र समय में ही बदल जाता है। संसार में पेड़, पौधे, पशु, पक्षी मानव सब पल-पल करके मौत के किनारे की तरफ बढ़ रहे हैं, जो बीत गया वह आपका भूतकाल था। अच्छा बुरा जो भी था वह गुजर चुका है। उसको याद करके अपने वर्तमान पल को खत्म करना मूर्खता है और जो अभी तक समय आया नहीं विधाता के बनाए उस खेल को कोई नहीं समझ पाया कि एक पल बाद क्या होना है। विनाश जल प्रलय कुछ भी हो सकता है।
इस पल-पल बदलते संसार में एक पल बाद क्या होगा किसी को पता नहीं आने वाला समय गर्भ में है। उसको आज तक देवता भी नहीं समझ पाये और प्रकृति अगर ठीक-ठाक रहती है तो आपके भविष्य में वही होगा जो आज आप सोच रहे हो, जैसे कर्म कर रहे हो। अच्छे कर्म करते हुए चलें भविष्य की चिंता प्रभु को समर्पण कर दें, जो होगा अच्छा ही हो। भविष्य व अतीत को भूलकर वर्तमान में जीना ही योग है। मनुष्य की एक मानसिक प्रॉब्लम है कि वह वर्तमान में जीता ही नहीं या तो भूतकाल के विचारों में रहेगा या भविष्य की तैयारी में रहेगा वर्तमान में मनुष्य पूरे जीवन में एक साल भी नहीं जी के जाता।
यह कारण इसलिए है कि मनुष्य ने इच्छाएं बहुत पाल रखी हैं जितने भी कर्म किये और जितने कर रहे हैं और जो आगे करोगे उन सब कर्मों को करने से जो फल मिलता है उस विचार को अपने मन से त्याग कर संसार की सभी आसक्तियों का त्याग कर भूतकाल व भविष्य की चिंता को त्यागकर जो सम (स्थिर) हो गया इन बीतते हुए पलों को जो महसूस कर रहा है, अपने आसपास की आवाजों को आंखें बन्द करके शांत स्थिर होकर सुने जैसे चिड़ियां की चहचाहट, वृक्षों के पत्तों की सरसराहट अपने चेहरे पर हवा लगने को महसूस करना।
सूर्य को निकलते व छिपते देख कर उसमें विलीन हो जाना अपने शरीर को साक्षी बनकर अध्ययन करना जैसे सांसे चल रही हैं, धड़कन धड़क रही है, विचार चल रहे हैं, इन सब बातों को बिल्कुल सम (स्थिर) होकर साक्षी बनकर देखना कोई भी चीज की इच्छा ना पकड़ ले मन इतना स्थिर होकर आप चाहे सन्यास मार्ग पर चलें चाहे कर्म मार्ग पर चलें। दोनों में आसक्तियां छोड़कर आत्मा में सम हो जाना ही योग है।
योग में आरूढ़ होने की इच्छा वाले पुरूष को निष्काम भाव कर्म करना ही योग में हेतु कहा जाता है, इच्छा त्याग करने के बाद जब आप अपने आप को सम स्थिर कर लेते हो और फिर योग मार्ग पर चलते हो। मार्ग पर चलते समय जो सब संकल्पांे का त्याग किया है आपने वही मुक्ति में हेतु (कारण) कहा जाता है।