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तं विद्याद् दुःखसंयोगवियोगं योगसंज्ञितम्। 
स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णचेतसा।।
अर्थ जिसमे समस्त दुःखों के संयोग का ही वियोग है उसी को 'योग' जानना चाहिए , न विचलित हुए चित्त से उस ध्यान को धैर्य और निश्चयपूर्वक करना चाहिए व्याख्यागीता अध्याय 6 का श्लोक 23 चाहे समता कह दे, चाहे संसार के संयोग का वियोग कह दे योग अर्थात समता (स्थिर) वर्तमान के इस पल में आत्मा से आत्मा में एकीभाव हो जाना ही योग है। जिसका नाम योग है, जो दुख के संयोग से रहित है। उसको जानना चाहिए वह योग, न उकताये हुए चित से, यानि ध्यान से निश्चय पूर्वक करना चाहिए।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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