योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः।
सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते।।
सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते।।
अर्थ जिसकी इन्द्रियां और शरीर वश में है और जिसका अन्तःकरण शुद्ध है , ऐसे कर्मयोगी जो सभी जीवों में आत्मरूप परमात्मा को देखते हैं वो सभी कर्मों को करते हुए भी कर्मबन्धन से मुक्त रहते हैं व्याख्या