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संन्यासस्तु महाबाहो दुःखमाप्तुमयोगतः।
योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म नचिरेणाधिगच्छति।।
अर्थ परन्तु हे महाबाहो ! कर्मयोग के बिना सांख्य योग सिद्ध होना कठिन है। ज्ञानी कर्मयोगी शीघ्र ही ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है व्याख्यागीता अध्याय 5 का श्लोक 6 परन्तु हे महाबाहो (बड़ी-बड़ी भुजा वाला महाबाहो होता है) कर्म योग के बिना सन्यास अर्थात मन, इन्द्रियां और शरीर द्वारा होने वाले सम्पूर्ण कर्मों में कर्त्तापन का त्याग होना कठिन है। सन्यासी को मन, शरीर, इन्द्रियां भी अपनी नहीं समझनी होती। जैसे सन्यासी ध्यान समाधि में लगातार बीस दिन या इससे भी ज्यादा दिन तक एक जगह अपने शरीर को भूलकर शून्य में चले जाते हैं। इन बीस दिन में मच्छर खाये, भूख लगे या शरीर में कुछ भी जकड़न हो, उसमें वह सन्यासी अपने से अलग शरीर को मानता है। शरीर में कुछ भी हो वह उसके कर्त्तापन (यानि मेरे शरीर) से अपने को दूर ही रखता है दृष्टा बनकर। इसलिए भगवान कहते हैं योग अर्थात सम हो जाना। योग के बिना सन्यास को प्राप्त करना बहुत कठिन व दुखदायी है। यह सन्यास योग के लिए कहा गया है। इससे दूसरा कर्मयोग में परम को मनन करने वाला कर्मयोगी, परमात्मा को शीघ्र ही प्राप्त हो जाता है। क्योंकि कर्मयोगी सब कर्मों के फल की इच्छा छोड़कर परम प्रभु के बताए मार्ग पर चलता है इसलिए सन्यास से कर्मयोग में मुक्ति पाना आसान है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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