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भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम्।
सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति।।
अर्थ जो मुझे सर्व यज्ञ और तप करने वालों का भोक्ता, सम्पूर्ण लोकों का महेश्वर, सब भूतों का सुहृद् (मित्र) समझते हैं वही भगत शान्ति को प्राप्त होते हैं।  व्याख्यागीता अध्याय 5 का श्लोक 29 यज्ञ, तप, भोग इनको अपना मानकर अपने लिए शुभ कर्म करने से मनुष्य खुद इन कर्मों का भोक्ता बन जाता है। भगवान कहते हैं कि तुम सम्पूर्ण कर्म को अपने लिए मत करो, केवल मेरे लिए ही करो। ऐसा करने से तुम फल भोगी नहीं बनोगे और तुम्हारा कर्मों से सम्बन्ध विच्छेद हो जायेगा। सब कुछ परम प्रभु का ही है। एक परमात्मा ही सम्पूर्ण लोकों के महान ईश्वर हैं, ऐसे ज्ञान को जानकर भक्त शान्ति (परमधाम) को प्राप्त हो जाता है। ‘‘ जय श्री कृष्णा ’’
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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