कामक्रोधवियुक्तानां यतीनां यतचेतसाम्।
अभितो ब्रह्मनिर्वाणं वर्तते विदितात्मनाम्।।
अभितो ब्रह्मनिर्वाणं वर्तते विदितात्मनाम्।।
अर्थ ऐसे योगी जो काम और क्रोध से सर्वथा रहित और आत्म सवरूप का साक्षात्कार करके मन पे विजय पा चुके हैं, उनके लिए इस लोक और परलोक में ब्रह्मनिर्वाण समान प्रकार से स्थित होता है व्याख्यागीता अध्याय 5 का श्लोक 26
जिसका मन जीता हुआ है काम, क्रोध आदि जिसको विचलित नहीं करते वह योगी संसार की इच्छाओं का त्याग कर चुका है। परमात्मा का साक्षात्कार किये हुए ज्ञानी पुरूषों के लिए सब और (सर्वत्र दिशाओं) में शांत, स्थिर हर समय में हर जगह परमात्मा ही परिपूर्ण है।