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योऽन्तःसुखोऽन्तरारामस्तथान्तर्ज्योतिरेव यः।
स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति।।
अर्थ जो परमात्मा में सुखी है, आंतरिक आनंद में संतुष्ट है और अंतर्ज्योति से प्रकाशित है, और केवल परमात्मा में रमण करने वाला है वह ब्रह्म-भाव को प्राप्त हुआ योगी निर्वाण ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है व्याख्यागीता अध्याय 5 का श्लोक 24 जो योगी परमात्मा में सुख वाला है, उसको प्रकृति जन्य पदार्थों में सुख प्रतीत नहीं होता। एक परमात्मा में ही सुख मिलता है। परमात्मा तत्व के सिवाय कहीं भी उसको सुख बुद्धि नहीं रहती। परम आत्मा तत्व का अनुभव उसे हर पल होता है क्योंकि उसके सुख का आधार प्रकृति पदार्थों का संयोग नहीं। जो योगी परम में सुख वाला परम में ही रमण करने वाला परम में ही अपनी स्थिति का अनुभव करने वाला, वह सांख्य योगी निवार्ण ब्रह्म को प्राप्त होता है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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