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इहैव तैर्जितः सर्गोयेषां साम्ये स्थितं मनः।
निर्दोषं हि समं ब्रह्मतस्माद्ब्रह्मणि ते स्थिताः।।
अर्थ जिनका अन्तःकरण सम होकर स्थिर हो जाता है वे जीवित अवस्था में ही मुक्ति पा लेते हैं वे ब्रह्म के सामान दोषरहित गुणों से संपन्न हो जाते हैं और इस प्रकार वे पर ब्रह्म में स्थित हो जाते हैं व्याख्यागीता अध्याय 5 का श्लोक 19 मन बन्दर की तरह छलांग लगाता रहता है कभी किसी विषय पर कभी किसी विषय पर लेकिन परमात्मा को प्राप्त करने वाला योगी जिसका मन समभाव में स्थिर है। उन्होंने जीवित अवस्था में ही सम्पूर्ण संसार जीत लिया है क्योंकि जिसकी बुद्धि समता में स्थित है। उनमें राग, द्वेष, नहीं रहते उनकी यह समबुद्धि अटल बनी रहती है कि सबकुछ परमात्मा ही है। क्योंकि परमात्मा निर्दोष और सम है इसलिए वे योगी सच्चिदानन्दघन (सत चित आनन्द) परमात्मा में ही स्थित है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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