न कर्तृत्वं न कर्माणिलोकस्य सृजति प्रभुः।
न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तुप्रवर्तते।।
नादत्ते कस्यचित्पापंन चैव सुकृतं विभुः।
अज्ञानेनावृतं ज्ञानंतेन मुह्यन्ति जन्तवः।।
ज्ञानेन तु तदज्ञानंयेषां नाशितमात्मनः।
तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम्।।
न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तुप्रवर्तते।।
नादत्ते कस्यचित्पापंन चैव सुकृतं विभुः।
अज्ञानेनावृतं ज्ञानंतेन मुह्यन्ति जन्तवः।।
ज्ञानेन तु तदज्ञानंयेषां नाशितमात्मनः।
तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम्।।
अर्थ परमेश्वर न तो कर्त्तापन की, न कर्मों की और न कर्मफल का सृजन करते हैं,अपितु ये प्रकृति के स्वभाव से ही संयोग निर्मित होता है | सर्वव्यापी ईश्वर कभी किसी के पाप एंव पुण्य कर्मों को स्वीकार नहीं करते, बल्कि अज्ञानता के अँधेरे से ज्ञान का प्रकाश छिपा हुआ है इसके चलते ही जिव मोहित होते रहते हैं परन्तु जिन ज्ञानियों ने आलोकिक ज्ञान की रौशनी से अज्ञान का नाश कर दिया है वो परमतत्व के प्रकाश से सूर्य की तरह प्रकाशित हो उठते हैं व्याख्यागीता अध्याय 5 का श्लोक 14-16
न तो कर्त्तापन की, न कर्मों की, न कर्म फल के संयोग की परमेश्वर किसी की भी रचना नहीं करते। तो परमेश्वर किसकी रचना करते है? परमेश्वर तो प्रकृति के स्वभाव की रचना करते है।
सर्व व्यापी (सब जगह) परमेश्वर ना किसी की रचना करते हैं ना पाप कर्म ना शुभ कर्म को ग्रहण करते हैं। लोग अपने किए हुए पाप पुण्य का फल भोग रहे हैं। लेकिन अज्ञान यह है कि लोग सोचते हैं कि जो दुख मिला है वह प्रभु की मर्जी है। यह अज्ञान है, प्रभु आपको क्यों दुख देगा? आपके विचार ही दुख सुख के कारण हैं, जैसा विचार होगा वैसा ही कर्म होगा और जैसा कर्म होगा फल भी वैसा ही मिलेगा। आम का पेड़ लगाओगे तो फल आम ही मिलेगा। यह नहीं कि आपने पेड़ लगाया आम का और फल रूप में अनार लग गये। जैसे कर्म करोगे फल वैसा ही मिलेगा। कर्त्तापन (मैंने किया है) कर्म (अच्छे बुरे) फल इन सब की रचना मनुष्य खुद करता है। अच्छे विचारों का, अच्छे कर्मों का फल अच्छा ही मिलता है, कर्म बुरे करोगे तो फल बुरा ही मिलेगा। बुरा मिलने पर अज्ञान से यह मत कहना कि भगवान तो मेरे पीछे ही पड़ गये, अज्ञान के द्वारा ज्ञान ढका हुआ है। ज्ञान यह है कि आप जैसा सोचोगे आपको विचार भी वैसे ही आएंगे आप जिस मार्ग पर चलोगे चाहे वह अच्छा है चाहे बुरा परमात्मा आपको उसी काम में आगे बढ़ाएगा। आप भक्ति करोगे तो फल भक्ति का मिलेगा। आप चोरी करोगे तो चोरी के विचार आएंगे। आप सर्वहित के फायदे का सोचोगे तो परमात्मा आपको सर्वहित के विचार देगा यानि पचास प्रतिशत काम आपका होता है पचास प्रतिशत परमात्मा का। परमात्मा का इसलिए है कि आप सोचोगे वैसा गणित करके आगे मार्ग आपको परमात्मा ही दिखाते हैं। आप जिस मार्ग पर चलोगे परमात्मा आपको विचार वैसे ही देगा। तो आप देखें कर्त्ता कौन है, मनुष्य संसार की माया में पड़ा हुआ और जैसा करेगा सोचेगा प्रभु वैसी ही उसको सपोर्ट कर देंगे। अब अच्छे फल को भी परमात्मा ग्रहण नहीं करते। अच्छा किया तो खुद ने किया बुरा किया तो भी खुद ने किया। यह ज्ञान ना होने से ही अज्ञान ढ़का हुआ है उसी अज्ञान से सब जीव मोहित हो रहे हैं।
परन्तु जिसका वह अज्ञान तत्वज्ञान द्वारा नष्ट कर दिया गया है। (अज्ञान यही कि सबको प्रभु भाग्य देता है ज्ञान यही कि जैसा भाग्य बनाओगे वैसा ही प्रभु फल दे देते हैं।) प्रकृति का गणित समझ गया वह परम ही है वह तत्वज्ञानी है और उसने तत्वज्ञान द्वारा अज्ञान नष्ट कर दिया है। उस योगी का ज्ञान सूर्य की तरह उसके भीतर सत चित आनन्द परमात्मा को प्रकाशित कर देता है।