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कायेन मनसा बुद्ध्याकेवलैरिन्द्रियैरपि।
योगिनः कर्म कुर्वन्तिसङ्गं त्यक्त्वात्मशुद्धये।।

युक्तः कर्मफलं त्यक्त्वाशान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम्।
अयुक्तः कामकारेण फलेसक्तो निबध्यते।।
अर्थ कर्मयोगी आसक्तिरहित होकर अपने मन शरीर और इन्द्रियों द्वारा केवल आत्मशुद्धि हेतु कर्म करते हैं ऐसे कर्मयोगी कर्मफल परम को समर्पित कर अनंत शांति को प्राप्त कर लेते हैं परन्तु स्वार्थ से प्रेरित हो कर्म करने वाले मनुष्य आसक्ति के कारण बंधनो में बंध जाते हैं व्याख्यागीता अध्याय 5 का श्लोक 11-12 ममत्व बुद्धि रहित अर्थात मोह बुद्धि छोड़कर, बुद्धि मन, शरीर, इन्द्रियों की आसक्ति छोड़कर, अन्तःकरण अर्थात मन की शुद्धि के लिए कर्म करते हैं। कर्मयोगी कर्मों के फल का त्याग करके स्थाई शान्ति (मुक्ति) को प्राप्त होता है। सकाम पुरूष (सब काम करने वाला) कामना की प्रेरणा से फल की इच्छा करके संसार के जन्म मरण बंधन से बंधता है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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