अर्जुन उवाच
संन्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि।
यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम्।।
संन्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि।
यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम्।।
अर्थ अर्जुन ने कहा: हे कृष्ण! आप संन्यास को कर्मों का त्याग कहते हैं और फ़िर् योगयुक्त कर्म कि प्रशंसा भी करते हैं। इन दोनों में से एक जो श्रेष्ठ कल्याणकारी है, उसे मुझे निश्चित रूप से बताइए व्याख्यागीता अध्याय 5 का श्लोक 1
इस तरह ज्ञानयोग और कर्मयोग भगवान ने दोनों की प्रशंसा की पिछले अध्याय में।
अर्जुन दोनों की प्रशंसा सुनकर तथा दोनों के लिए आज्ञा प्राप्त होने पर यह निर्णय नहीं कर सके कि इन दोनों में से कौन सा साधन मेरे लिए श्रेष्ठ है और इसका निर्णय भगवान से करवाने के लिए अर्जुन ने प्रश्न पूछा कि इन दोनों में से एक मेरे लिए निश्चित करके जो कल्याण कारक हो उसको कहिए।