यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।
अर्थ हे भरतवंशी अर्जुन! जब -जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब -तब मैं अपने-आप को साकार रूप से प्रकट करता हूँ। मैं साधुओं और भक्तों की रक्षा के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए, और धर्म की स्थापना के लिए हर युग में प्रकट होता हूँ व्याख्याहे भारत**!** धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि का स्वरूप है, भगवान को चाहने वाले प्रेमी धर्मात्मा, सदाचारी, निर्बल, संतों पर पापी, दुराचारी और असुरी मनुष्यों का अत्याचार बढ़ जाना तथा लोगों में सदगुण विचारों की कमी और दुर्गुण विचारों का अधिक बढ़ जाना। धर्म की हानि अधर्म की वृद्धि होने पर लोगों की प्रवृति अधर्म में हो जाती है। परम प्रभु कहते हैं कि जब पाप बढ़ जाता है तब तब मैं अपने रूप को रचता हूँ। यानि शरीर रूप में लोगों को दिखते हैं लेकिन शरीर रूप में जन्म लेकर भी वह परम कार्य करते हैं। जब जब अधर्म बढ़ता है तब तब परमात्मा नये नये रूप धारण करके आते रहते हैं। कभी राम बनके आते हैं रावण जैसे पापीयों का नाश करने के लिए। कभी परमात्मा कृष्ण बनके आते हैं कभी बुद्ध, महावीर, ईसा मसीह, कभी पैगम्बर, तो कभी नानक, कबीर, जाभोजी जब जब इस पृथ्वी पर जरूरत होती है, तब तब भगवान किसी के घर में जन्म लेकर इस संसार में धर्म की अच्छी प्रकार स्थापना करने आते हैं।
आज इस पृथ्वी पर जितने भी अच्छे कर्म (सर्वहित का भला) करने वाले योगी हैं, वह परम प्रभु के मार्ग पर चलते हैं। वह परम का ही कार्य कर रहे हैं। परमात्मा को जब जिस जगह जो कार्य करना होता है, उस जगह परमात्मा एक अच्छे विचार वाले व्यक्ति के भावों में उस कार्य को करने के विचार उत्पन्न कर देते हैं। फिर वह व्यक्ति योग के पथ पर चलता हुआ जो परमात्मा को कार्य करना होता है वह उस योगी से उस कार्य को पूर्ण करवाते है। यानि जब जब प्रभु को धर्म की वृद्धि करनी होती है, तब तब साकार रूप से प्रकट होते हैं। परमात्मा साधु पुरूषों का कल्याण करने के लिए व पाप कर्म करने वाले पापियों का विनाश करने के लिए और धर्म (स्वधर्म) की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए युग-युग में (समय-समय) पर प्रकट हुआ करते हैं।