Logo
अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन्। 
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय संभवाम्यात्ममायया।।
अर्थ यद्यपि मैं अजन्मा, अविनाशी, और सम्पूर्ण प्राणियों का ईश्वर होते हुए भी, अपनी प्रकृति को अधीन करके और अपनी योगमाया से प्रकट होता हूँ व्याख्याआत्मा का कभी जन्म नहीं होता, यह अजन्मा और अविनाशी है तथा सम्पूर्ण प्राणियों का ईश्वर है, जब भगवान को कुछ कार्य करने होते हैं तब वह जन्म लेकर ही आते हैं। यानि शरीर मानव जैसा ही धारण करके आते हैं। आप जन्में हुए हो आप संसार का वैराग्य करके बिल्कुल शांत व स्थिर होकर अपने को जानोगे तो आप भी आत्मा हो। आप अपने जीवन को योग से यज्ञमय बना दो परमात्मा आपके भीतर खिल उठेगा। फिर परमात्मा आपके माध्यम से यानि आपके इस शरीर से जो कार्य करने होंगे वह करेंगे। इस संसार में परमात्मा अपनी योगमाया से प्रकट होते हैं। परमात्मा को प्रकृति में स्थित मनुष्यों के सामने आना होता है। इसलिए प्रभु प्रकृति को स्वीकार करके प्रकट होते हैं। तभी मनुष्य उनको देख सकते है।
logo

अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

Follow us on

अधिक जानकारी या निस्वार्थ योगदान के लिए आज ही संपर्क करे।

[email protected] [email protected]